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भश्वत्थ-असंयम
वाहक-पु० घुड़सवार। -वार-चारक-पु० घुड़सवार; अष्टाध्यायी (यिन)-वि० [सं०] आठ अध्यायोंवाला। साईस। -व्यूह-पु० घुड़सवार सेनाको सामने और अष्टावक्र-पु० [सं०] एक प्रसिद्ध ऋषि । वि० जिसके अगल-बगल रखकर रचा हुआ व्यूह । -शक्ति-स्त्री० | आठ अंग टेढ़े हों; कुरूप । . (हार्सपावर) उतनी शक्ति जितनी प्रति सेकंड ५५० असंक*-वि० दे० 'अशंक'। पौंड (= ६।। मन) वजनको एक फुट ऊपर उठानेके लिए असंका-स्त्री० दे० 'आशंका'। आवश्यक होती हैं। -शास्त्र-पु० घोड़ेके शुभाशुभ असंकुल-वि० [सं०] जहाँ भीड़ न हो; खुला हुआ चौड़ा। लक्षण बतानेवाला शास्त्र; शालिहोत्र।
असंक्रांत-वि० [सं०] जिसका संक्रमण न हुआ हो, जो एक अश्वत्थ-पु० [सं०] पीपल; पीपलका गोदा ।
क्षेत्रसे दूसरे में न गया हो । पु० अधिक मास । अश्वत्थामा (मन्)-पु० [सं०] महाभारतमें कौरवपक्षका एक | असंख-वि० दे० 'असंख्य'।। महारथी, द्रोणाचार्यका पुत्र; महाभारतमें हत एक हाथी। असंख्य, असंख्यक, असंख्यात-वि० [सं०] अगणित, अश्वस्तन, अश्वस्तनिक-वि० [सं०] आजसे ही संबंध रखने बे-हिसाब, बे-शुमार । वाला; अगले दिनके खानेका ठिकाना न रखनेवाला। असंख्येय-वि० [सं०] अगणित, बे-शुमार । अश्वाध्यक्ष-पु० [सं०] घुड़सवार सेनाका नायक । असंग-वि० [सं०] अनाशक्त, बंधनरहित, निलिप्त अकेला। अश्वानीक-स्त्री० [सं०] घुड़सवार सेना, रिसाला ।
पु० अनाशक्तिः पुरुष, आत्मा (सांख्य०)। अश्वायुर्वेद-पु० [सं०] अश्व-चिकित्सा-शास्त्र ।
असंगत-वि० [सं०] बेमेल, असंबद्ध, प्रसंगविरुद्ध अनुचित, अश्वरूढ, अश्वारोही (हिन्)-पु० [सं०] घुड़सवार । __ अयुक्त; असमान; उजड्ड । अश्विनी-स्त्री० [सं०] घोड़ी; २७ नक्षत्रोंमेंसे पहला नक्षत्र; असंगति-स्त्री० [सं०] मेलका न होना, अनौचित्य; एक जटामासी । -कुमार, पुत्रा-सुत-पु० सूर्यकी पत्नी __ अर्थालंकार जिसमें कार्य-कारण, देश, काल-संबंधी असंगति प्रभाके घोड़ीका रूप ग्रहण कर लेनेपर उससे उत्पन्न दो पुत्र (अन्यथात्व) का वर्णन किया जाय-कार्य कहीं,कारण कहीं जो देवताओंके वैद्य माने जाते हैं, स्ववेद्य ।
दिखाया जाय। अष्ट (न्)-पु० [सं०] आठकी संख्या । वि० ७ से १ असंचय-वि० [सं०] संभारहीन, जिसके पास आवश्यक अधिक या ९ से १ कम, आठ। -कमल-पु० हठयोगमें वस्तुएँ मौजूद न हों। पु० संचय या संभारका अभाव । मूलाधारसे मस्तकतक माने गये आठ चक्र । -कुल-पु० असंचयिक, असंचयी (यिन्)-वि० [सं०] संचय न पुराणों में बताये गये सौके आठ कुल । -कृष्ण-पु० करनेवाला। वल्लभ-संप्रदायमें माने गये कृष्णके आठ रूप-श्रीनाथ, असंज्ञ-वि० [सं०] संशाहीन । नवनीतप्रिय, मथुरानाथ, विट्टलनाथ, द्वारकानाथ, गोकुल- असंत-वि० असाधु, खल । नाथ, गोकुलचंद्रमा और मदनमोहन । -कोण-वि० असंतुष्ट-पु० [सं०] अतृप्त; अप्रसन्न । अठकोना, अठपहल । -गंध-पु० पूजनमें व्यवहृत आठ असंतोष-पु० [सं०] अतृप्ति अप्रसन्नता, नाराजगी; बेसब्री, सुगंधित वरतुओंकसमूह, गंधाष्टक । -छाप-पु० [हिं०] लोभ । आठ पुष्टि मागी कवियोंका वर्ग, जिसमें सूरदास, नंददास, असंतोपी (पिन)-वि० [सं०] संतुष्ट न होनेवाला; बेसब्र; कुंदनदासादि थे। -दल-वि० अठपहला, अठकोना । पु० आठ दलोंका कमल । -द्रव्य-पु० यशकी सामग्रीके | असंदिग्ध-वि० [सं०] संदेहरहित; निश्चित, पक्का । आठ द्रव्य-पीपल, गूलर, पाकड़, बरगद, तिल, सरसों, असंप्रज्ञात-वि० [सं०] सम्यक् प्रकारसे न जाना हुआ। पायस और घृत । -धाती-वि० [हि०] जिसके माता- | -समाधि-स्त्री० वह समाधि जिसमें शाता, शय, ज्ञानका पिताका ठीक पता न हो, वर्णसंकर । -धातु-स्त्री० आठ भेद नहीं रह जाता, निर्विकल्प समाधि । मुख्य धातुएँ-सोना, चाँदी, ताँबा, राँगा, जता, सीसा, | असंबद्ध-वि० [सं०] संबंधहीन; बे-मेल; बे-लगाव; असंगत, लोहा और पारा। -पत्र-पु० आठ दलोंका कमल । बेतुका । -प्रलाप-पु० बेतुकी बकवास । -पद-वि० आठ पैरोंवाला । पु० मकड़ा; कीड़ा; शरभ | असंभव-वि० [सं०]न होने या होसकनेवाला,नामुमकिन । कैलास । -पदी-स्त्री० एक छंद; एक प्रकारका गीत पु० वह अर्थालंकार जिसमें यह दिखलाया जाय कि जो एक तरहकी चमेली; बेलेका फूल और पौधा ।।
बात हो गयी, उसका होना असंभव था; अनस्तित्व अष्टक-पु० [सं०] आठ वस्तुओंका समूह या योग; आठ | असंभावना; असाधारण घटना। ऋषियोंका एक गण; विश्वामित्रका एक पुत्र; अष्टाध्यायी असंभार*-वि० जो सँभाला न जा सके; विशाल; अपार । (व्या०)।
असंभावना-स्त्री० [सं०] संभावनाका न होना; होने योग्य अष्टम, अष्टमक-वि० [सं०] आठवाँ ।
न होना; अशक्यता। अष्टमी-स्त्री० [सं०] सित या असित पक्षकी आठवीं तिथि। असंभावनीय, असंभाव्य-वि० [सं०] दुबोध; असंभव । अष्टांग-वि० [सं०] जिसके आठ अंग या भाग हों। पु० असंभावित-वि० [सं०]जिसकी संभावना नरहीहो; असंभव। शरीरके वे आठ अंग जिनसे साष्टांग प्रणाम किया जाता | असंभाष्य-वि० [सं०] न कहने योग्य वार्तालाप न करने है-घुटना, हाथ, पाँव,छाती, सिर, वचन, दृष्टि और बुद्धि । योग्य । पु० कुवचन । -योग-पु० योगके आठ अंग-यम, नियम, आसन, असंयत-वि० [सं०] संयमरहित अनियंत्रित; बंधनहीन । प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि । असंयम-पु० [सं०] संयमका अभाव; मन, इंद्रिय आदिको
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