________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अशरण-अश्व
शब्दरहित । पु०ब्रह्म।
अशोकाष्टमी-स्त्री० [सं०] चैत्र शुक्ला अष्टमी । अशरण-वि० [सं०] आश्रयहीन, असहाय ।-शरण-वि० अशोच-पु० [सं०] चिताका अभाव; शांति; नम्रता । अशरणको शरण देनेवाला ( भगवान्)।
अशोच्य-वि० [सं०] शोक न करने योग्य । अशरफ-वि० [फा०] बहुत शरीफ, उच्चतर ।
अशोधित-वि० [सं०] जिसका शोधन या संस्कार न हुआ अशरफ्री-स्त्री० [फा०] सोनेका सिका, मुहर ।
हो, साफ न किया हुआ। -शेष-पु० (अनरिडीम्ड अशरा-पु० [अ०] मुहर्रमका दसवाँ दिन ।
बैलेंस) किसी ऋण आदिका वह बचा हुआ अंश जिसका अशराफ़-पु० [फा०] भले और प्रतिष्ठित लोग (शरीफका भुगतान या अदायगी न हुई हो। बहुवचन)।
अशोभन-वि० [सं०] असुंदर, अभद्र, न फबनेवाला । अशरीर-वि० [सं०] शरीररहित, निराकार । पु० पर- अशौच-पु० [२०] अपवित्रता; जन्म-मरणके कारण मात्मा; कामदेव संन्यासी ।
कुटुंबियों और सपिंड जनीको लगनेवाली छुत । अशरीरी (रिन)-वि० [सं०] शरीरहीन, अपार्थिव । पु० अश्म (न्)-पु० [सं०] पहाड़, पत्थर; चकमका बादल; ब्रह्मा; देवता।
सोनामाखी; लोहा । -ज-पु० लोहा; गेरू; शिलाजतु । अशर्फी-स्त्री० दे० 'अशरफी' ।
-जतु,-जतुक-पु. शिलाजतु । अशस्त्र-वि० [सं०] शस्त्रहीन, निःशस्त्र । पु० शस्त्र नहीं। | अश्मरी-स्त्री० [सं०] पथरी नामक रोग। अशांत-वि० [सं०] शांतिरहित, बेचैन, उद्विग्न; अस्थिर; अश्र-पु० [सं०] आँसू ; रक्त । -प-पु० राक्षस, नरभक्षक। अपवित्र अधार्मिक ।
अश्रद्धा-स्त्री० [सं०] श्रद्धाका अभाव; अविश्वास । अशांति-स्त्री० [सं०] बेचैनी क्षोभ; खलबली।
अश्रांत-वि० [सं०] न थका हुआ, अथक । अशालीन-वि० [सं०] विनयहीन, ढीठ ।
अश्राव्य-वि० [सं०] न सुनने योग्य । अशास्त्रीय-वि० [सं०] शास्त्रविरुद्ध, अविहित । अश्रु-पु० [सं०] आसू ।-कला-स्त्री० अश्रबिंद ।-गैसअशिक्षित-वि० [सं०] अपढ़; गँवार ।।
स्त्री० (टियरगैस) एक तरहकी जहरीली गैम जो आखोंमें अडिशव-वि० [सं०] अकल्याणकरः अमंगल-सचकः टरा- लगनेसे तेज जलन पैदा कर देती है जिससे आँस निकल वन। । पु० अमंगल; दुर्भाग्य, अहित ।
पड़ते और देखने में कठिनाई होती है (इसका प्रयोग अशिष्ट-वि० [सं०] शिष्टतारहित, असभ्य, उजदु; अवि- पुलिस द्वारा उपद्रवोन्मुख भीड़को तितर-बितर करने और नीत; अधार्मिक; अविहित।
कभी-कभी युद्धस्थलमें शत्रुसेनाकी बाढ़ रोकनेके लिए अशिष्टता-स्त्री० [सं०] अशिष्ट व्यवहार, असभ्यता, किया जाता है)। -पात-पु० आँसू गिरना; रोना । उजडुपन ।
-मुख-वि० रुऑसा; एकाएक रो पड़नेवाला । अशीत-वि० [सं०]ठंढा नहीं,गरम ।-कर-रश्मि-पु०सूर्य। अश्रुत-वि० [सं०] न सुना हुआ; विद्याहीन, अशिक्षित, अशीति-स्त्री० [सं०] ८०, अस्सीकी संख्या।
अवैदिक । -पूर्व-वि० पहले न सुना हुआ; अद्भुत । अशील-वि० [सं०] शीलरहित, उद्दण्ड । पु० उइंडता। अश्रति-वि० [सं०] कर्णहीन । स्त्री० न सुनना विस्मृति । अशुचि-वि० [सं०] अपवित्र, नापाक; मैला; काला। अश्लाघ्य-वि० [सं०] प्रशंसाके अयोग्य; निंद्य । स्त्री० अपवित्रता; अपकर्ष ।
अश्लिष्ट-वि० [सं०] श्लेषरहित, जिससे एकाधिक अर्थ न अशुद्ध-वि० [सं०] अपवित्र, नापाक; साफ न किया हुआ; निकलते हों; असंयुक्त; असंगत । अशोधित; सदोष; गलत ।
अश्लील-वि० [सं०] भद्दा; ग्राम्य; गंदा; लज्जा, घृणा या अशुद्धि-स्त्री० [सं०] अशुद्धता; गलती; गंदगी ।
अमंगलकी व्यंजना करनेवाला । अशुन-पु० अश्विनी नक्षत्र ।
अश्लीलता-स्त्री० [सं०] भद्दापन; ग्राम्यता रचनामें अश्लील अशुभ-वि० [सं०] अमंगलकारी; अनिष्टसूचक; अपवित्र; शब्दोंका प्रयोग। भाग्यहीन । पु० अमंगल; पाप; दुर्भाग्य ।
अश्लेष-वि० [सं०] शेषरहित, जिसमें दुहरा अर्थ न हो । अशषा-स्त्री० [सं०] अभिभावककी आशामें न रहनेका । अश्लेषा-स्त्री० [सं०] एक नक्षत्र ।-भव-भू-पु०केतु ग्रह । अपराध ।
अश्व-पु० [सं०] घोड़ा, ७ की संख्या (सूर्यके रथके घोड़ोंअशून्य-वि० [सं०] खाली नहीं; पूरा किया हुआ। की संख्या सात मानी गयी है)। -चिकित्सा-स्त्री०
-शयन-पु०, -शयनद्वितीया-स्त्री०,-शयनग्रत- पशुचिकित्सा शास्त्र । -तर-पु० खच्चर; एक सर्पराज; पु० श्रावण कृष्णा द्वितीयाको होनेवाला एक व्रत ।
एक गंधर्ववर्ग। -दंष्ट्रा-स्त्री० गोखरू। -दूत-पु० धुड़अशेष-वि० [सं०] संपूर्ण, समूचा; सबका सबा अपार; सवार दूत । -निबंधिक,-पाल,-पालक,-रक्ष-पु० असंख्य । -साम्राज्य-पु० शिव ।
साईस । -पति-पु० घुड़सवार; घोड़ोंका.मालिका भरतके अशोक-वि० [सं०] शोकरहित । पु० एक पेड़ जिसकी मामा । -मुख-पु० किन्नर, गंधर्व । -मेध-पु. एक पत्तियाँ लहरदार और सुंदर होती हैं और विशेषकर बंदन- प्रसिद्ध वैदिक यज्ञ जिसे कोई चक्रवती राजा या सम्राट वार बाँधने में काम आती है। कटुका राजा दशरथका एक ही कर सकता था और जिसमें सभी देशोंका भ्रमण करके मंत्री; मौर्यवंशका एक यशस्वी सम्राट विष्णु ।-पूर्णिमा- लौटनेवाले घोड़ेको मारकर उसकी चबीसे हवन किया स्त्री० फाल्गुनकी पूर्णिमा । -वाटिका-स्त्री. अशोककी जाता था; एक तान जिसमें पट्ज स्वर नहीं लगता। बाड़ी; वह बगीचा जहाँ रावणने सीताको कैद कर रखाथा। -युप-पु० अश्वमेधके घोड़ेको बाँधनेका खूटा। -वह,
For Private and Personal Use Only