Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्ययन सूत्रे
यद् अल्पाक्षर, तथा - महार्थं च भवति, अत्र "अल्पाक्षर महार्थम् " इति विशेषणद्वये चत्वारो भगा भवन्ति, यथा-- जल्पाक्षरमल्पार्थम् ' यथा कार्पासा दिकम् || १ || 'अल्पाक्षर - महार्थम् ' यथा - सामायिक बृहत्कल्पादि च ॥ २ ॥ ' महाक्षरमल्पार्थम्” । यथा--- ज्ञाताध्ययनानि, अन्यच्च यदस्या कोटो व्यवस्थितम् ।
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अब सूत्रलक्षण नाम का तीसरा द्वार कहते है - जो सूत्र सूत्रलक्षण से युक्त है वही उच्चारण करने के योग्य होता है। और उसीसे अपने वास्तविक अर्थ का बोध होता है। इससे विपरीत सूत्र द्वारा विवक्षित अर्थ की प्रतिपत्ति ज्ञान नही हो सकती है क्यों कि उससे यथार्थ अर्थ का प्रकाशन नही होता है । इस लिये " सूत्र का क्या लक्षण है" इस प्रकार के प्रश्न के समाधान निमित्त उसका लक्षण कहा जाता है । अप्पक्खर महत्य, बत्तीसदोस विरहिय ज च । लक्खणत्त सुत्त, अट्ठहिय गुणेहि उववेय " ॥ १ ॥ जिसमे अल्प अक्षर होते हैं और महान् जिसका अर्थ होता है एव बत्तीस दोषो से जो रहित होता है तथा आठगुणों से जो युक्त होता है। वह सूत्र है " अल्प अक्षर वाला हो एव अर्थ जिसका महान हो " इस प्रकार के सूत्र के विशेषण से ये ४ भग होते हैं-अल्प अक्षर वाला हो एव अल्प अर्थ वाला हो जैसे कपास आदि का बना हुआ सूत १ । अल्प अक्षर वाला हो, पर जिसका महान् अर्थ हो जैसे सामायिक सूत्र, હવે સૂત્ર લક્ષણ નામનુ ત્રીજી દ્વાર કહે છે—
જે સૂત્ર સૂત્રલક્ષણથી યુક્ત છે તે જ ઉચ્ચારણ કરવા માટે ચાગ્ય છે, અને એનાથી પાતાના વાસ્તવિક અર્થના મેધ થાય છે એનાથી વિપરીત સૂત્રથી વિક્ષિત અર્થની પ્રતિપત્તિ-જ્ઞાન થઈ શકતુ નથી, કારણ કે, એનાથી યથાર્થ અર્થનું પ્રકાશન થતુ નથી
अपक्खर महत्थ बत्तीस दोसविरहिय ज च ।
लसणजुत्त सुत्त अहिययेणेहि उववेय नेमा अक्षर गोछा होय छे भने અર્થ મહાન હેાય છે જે ખત્રીસ દાષાથી રહિત હૈાય છે તથા આઠ ગુણેાથી જે યુક્ત હાય છે તે સૂત્ર છે “થાડા અક્ષરવાળા હોય અને અથ જેમા મહાન હાય
આ પ્રકારના સૂત્રના વિશેષણથી આ ચાર ભગ થાય છે ચેાડા અક્ષર વાળા હાય અથવા અત્ય અથવાળા હાય જેમ કે કપાસ આદિથી અનેલ સુતર ૧ ચેડા અક્ષરવાળા હોય પણ જેને અ મહાન હોય, જેવા સામાયિક