Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ० १३ गा १२-३ चतुरङ्गीप्राप्तस्य मोक्षफल्म् ७९१ मूलम् -साही उज्जुंयभूयस्स, धम्मो सुद्धस्स चिहइ ।
निव्वाणं परम जाइ, घयंसित्तव पावए ॥ १२ ॥ छाया-शुद्धिः ऋजुभूतस्य, धर्मः शुद्धस्य विष्ठति ।
निर्माण परम याति, घृतसिक्त इन पाकः ॥ १० ॥ टीका-सोही' इत्यादि।
ऋजुभूतस्य सरलीभूतस्य मानुपत्यादिचतुरङ्गीप्राप्तस्य मोक्ष प्रति नरन्तर्येण प्रत्तात्मन इत्ययः शुद्धिर्भपति, कपायकालुप्यापगमादिति भावः। तदनन्तर शुद्धस्य-शुद्धि प्राप्तस्य धर्मः शान्त्यादिस्तिष्ठति=स्थिरो भवति विचलितो न भक्तीत्यर्थ । शुद्धिरहिवस्य तु कपायोदयशात् कदाचित् वर्मभ्रशसभादिति भावः। धर्मस्थैर्य प्राप्ते चासौधर्मात्मा, घृतसिक्तः धृतेन हुतः, पानका अग्निखि तपस्तेजसा दीप्यमानः, परमम् उत्कृष्ट, निर्माण याति-मुक्ति प्रामोति-केनली भवतीत्यर्थः।।१२।। __ अन्वयार्थ-(उज्जुयभूयस्स-ऋजुभूतस्य) सरलीभूत-मानुपत्व आदिचारों
की प्राप्तिसे मोक्षके प्रति निरन्तर प्रवृत्तिशील आत्माकी (मोही-शुद्धिः) कपायजन्य कलुपता के नष्ट होने से शुद्धि होती है। तदनन्तर (सुद्धस्सशुद्धस्य) शुद्धि को प्राप्त हुए उस आत्मा के (धम्मो चिट्ठइ-धर्मः तिष्ठति) क्षान्ति आदिरूप धर्म स्थिर होता है। जो शुद्वि से विहीन आत्मा है वह कपायोदय के वश से कदाचित् धर्म से भ्रष्ट भी हो सकता है। जय
आत्मा मे धर्म स्थिरता को पालेता है तब वह धर्मात्मा (घयसित्तव्य पावए-घृतसिक्त इव पावक ) धृत से सिक्त अग्नि की तरह तपके तेज से देदीप्यमान होतो हुआ (परम निवाण जाइ-परम निर्वाण याति) उत्कृष्ट-अपुनरावृत्तिरूप-मुक्ति को पालेता है ॥१२॥ ___अब शिष्य को उपदेश करते हुए कहते हैं-'विगिंच' इत्यादि।
___ मन्वयार्थ-उज्जुयभूयस्त्र-ऋजुभूतस्य मनुष्यत्व विगैरे या२ परतुनी प्राप्ति यतामाक्षनी २५ नि२२ प्रवृत्ति मामानी सोही-शुद्धिः उपायय ४९ पता नट याथी शुद्धि थाय हे सुद्धस्स-शुद्धस्य शुद्धिन पास या ५ ते मात्मामा धम्मो चिइ-धर्मस्तिष्ठति क्षमा विशे२ ३५ धर्म स्थि२ थाय छ જે શદ્ધિથી રહિત આત્મા છે તે વાયના ઉદયને વશ કરીને કદાચ ધર્મથી શ્રણ પણ થઈ જાય છે જ્યારે આત્મામા ધર્મ સ્થિર થઈ જાય છે ત્યારે તે धमात्मा घयसित्तव्य पावए-घृतसिक इव पावक धाबी सी यायेता मजिना भाइ तपन यी हिप्यमान 4/परम निव्वाण जाइ-परम निर्वाण याति એને ફરી જન્મ ન લેવું પડે એવા પરમ નિર્વાણ મેક્ષને પ્રાપ્ત કરે છે ૧૨
वे शिष्यने पहेश मापता उ8 2-'विगिंच' त्याल