Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 939
________________ ८०० उत्तराम्पमसूत्र ___टीका-'चउरग ' इत्यादि । दुर्लभा चतुरङ्गी-मानुपत्य, श्रुति , अद्धा, सयमे वीर्य चेति चतुष्टय ज्ञात्वामाप्य, सयम मतिपद्य-अङ्गीकत्य, तपसा युतकर्माश अपनीतकारशेपः शाश्वतः सिद्धो भवति । सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामिन प्रति तृतीयाध्ययनार्थमुवाऽन्ते पाह-हे जम्बूः ! इति =इद भगवता यदुक्त नदिद योमि, न तु स युद्धया कल्पित किंचित् कथयामि।।२०॥ इति श्रीविश्वविख्यात-जगहल्लभ-प्रसिद्धवाचक-पञ्चदशमापाकलितललितकलापालापक-प्रविशुद्धगधपद्यनेकग्रन्थनिर्मायकपादिमानमर्द-श्रीशाहछत्रपति- कोल्हापुरराजमदत्त"जैनशास्त्राचार्य "-पदभूपित-कोल्हापुरराजगुरुवालब्रह्मचारि-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्यश्रीघासीलालप्रतिविरचिताया श्रीमदुत्तराध्ययनसूनस्य प्रियदर्शिन्यारयाया व्यारयायां चतुरङ्गीयनामक तृतीयमध्ययन ___सम्पूर्णम् ॥ ३ ॥ के तथा (सजम पडिवज्जिया-सयम प्रतिपद्य) सयम को अगीकार करके (नवसाधुयकम्मसे-तपसा धृतकर्माशः) एव तप से अवशिष्ट कमोश को नष्ट करके (सासए सिद्धे हवइ-शाश्वतः सिद्धो भवति) शाश्वत सिद्ध हो जाता है। सुधर्मास्वामी जबूस्वामी के प्रति इस तृतीय अध्ययन के अर्थ को कह कर अन्त में उनसे कह रहे हैं कि-(त्तिवेमि-इति ब्रवीमि) हे जम्बू। जो यह मैने कहा है सो भगवान के द्वारा कहा गया ही कहा है स्वबुद्धि से कल्पित कर नहीं कहा है ॥ २० ॥ ॥ इस प्रकार उत्तरा-ययन सूत्रकी प्रियदर्शिनी टीका में यह चतुरगीय नामक तृतीय अध्ययन का हिन्दी भाषानुवाद सपूर्ण हुआ ॥३॥ प्रतिपद्य सयभने पनिार श तवसा धुयकम्मसे-तपसा धूतकर्माश मन तपथी अपशिष्ट में मशन नष्ट शने सासए सिध्धे हवइ-शाश्वत सिद्धो भवति શાશ્વત સિધ્ધ થઈ જાય છે સુધર્માસ્વામી જખ્ખસ્વામીન આ ત્રીજો અધ્યયનનો અર્થ કહીને અતમાં તેને छ, तिबेमि-इतिब्रवीमि भ्यू । मारे मे ४यु छेतलगवान ५२भा०५ છે તે જ મે કહ્યું છે, મારી પિતાની બુદ્ધિથી કલ્પિત એવું કાઈ કહ્યું નથી લાગે આ પ્રકારે ઉત્તરાધ્યયનની પ્રિયદર્શની ટીકામાં આ ચતુરગીય નામના ત્રીજા અધ્યયનને ગુજરાતી અનુવાદ સપૂર્ણ થયો છે ૩

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