Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 932
________________ प्रियदर्शिनी टोका अ ३ गा० १६ स्वर्गाच्च्युतस्य दशानभोगयुक्तकुलेजन्म ७९५ पूर्वाणि चतुरशीतिलपर्पपरिमितमेक पूर्वाङ्गम् । चतुरशीविलक्षपूर्वाङ्गपरिमितमेक पूर्व भवति । तत्तु सप्ततिलक्षकोटिपपवाशत्सहस्रकोटिव-(७०५६००००००००००) परिमित भाति । एरममाणानि बहूनि पूर्वागीत्यर्थः, बहूनिअसख्यातानि वर्षशतानि यावर तिष्ठन्ति । असख्यातशतपूर्वणि यापद् देवम वानि भुञ्जते ।। १५ ।। मूलम्-तत्थे ठिच्चा जहाँठाण, जक्खा आउक्खये चुंया । उति माणुस जोणि, से" देसगेभिजायए ॥१६॥ छाया-तत्र स्थित्वा यथास्थान, यक्षा आयुःक्षये च्युताः। उपयान्ति मानुपी योनि, स दशाहोऽभिजायते ॥१६॥ पुण्यों के द्वारा ही मानो उस स्थान पर लाकर रख दिये हैं, इसीलिये वहा (कानस्वविउचिणो-कामरूपविकुर्वाणाः) अपनी इच्छानुसार रूप को बनाते हुए वे देव ( उडूढ कप्पेसु-अर्वकल्पेषु) ऊपर ऊपर के सौधर्म आदि कल्पों मे-सौधर्म से लेकर अच्युतफल्प तक तथा उपलक्षणसे अवेयकों में एव अनुत्तर विम नों मे (एन्वा रहू वाससयापूर्वाणि रहूनि वर्षशतानि ) कई पूर्वो तक-अर्थात्-चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वाग होता है। चौरासी ८४ लाख पूर्वागका एक पूर्व होता है, वह पूर्व सत्तरलाखकरोड छप्पनहजार करोड ७०५६०००००००००० सत्तर छप्पन और ऊपर दश शून्य, ऐसे चौदह अकवाले वर्षों का होता है, इस प्रकारके बहुतपूर्वोतक, तथा असख्यात सैकडो वो तक (चिट्ठति -तिष्ठति ) निवास करते हैं, अर्थात् वहा सुखो को भोगते हैं ॥ १५॥ 'तत्व' इत्यादि। स्थान प्राप्त ४२पामा मा०यु छ भेटवा माटे त्या कामख्वविउविणो-कामरूपवि कुर्वाणा. पातानी ७२छ। मनुसार ३५ने मनावीन. १ उर्ल्ड कप्पेसु-उकल्पेप ઉપર ઉપરના સૌધર્મ આદિ કલ્પોમાં – સૌધર્મથી લઈ અચુતકલ૫ સુધી तथा S५८क्षथी अवेयी मने मनुत्तर विमानामा पुव्या बहू वाससया-पूर्वाणि वहनि वर्षशतानि माय पूरी सुधी अर्थात यौरासीमा वर्षानु मे४ पूर्वा થાય છે, એવા ચૌર્યાશી લાખ પૂર્વી ગનુ એક પૂર્વ થાય છે તે પૂર્વ ૭૦૫:૦૦૦૦૦૦૦૦૦૦ આ પ્રમાણે ચાદ આકવાળા વનું થાય છેઆવા પ્રકારના ઘણે પૂર્વે સુધી તથા અસ ખ્યાત સેકડો વર્ષો સુધી નિવાસ કરે છે એટલે કે ત્યા સુખને ભોગવે છે કે ૧૫ 'तत्थ'-त्यादि

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