Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रियदर्शिनी टीका अ० २ गा० ४४ वर्शनपरिपहजय
टीका-'नथि नूण' इत्यादि।
परो लोकः परभाः-जन्मान्तरम् , नून-निश्चयेन नास्ति न भवति । अय भाव -शरीर हि भूतात्मक, तदिहैव नश्यति, शरीरे वर्तमानस्य चैतन्यस्यापि भूतधर्मत्वादेव शरीरेण सह नाशसंभवात् । शरीरव्यतिरेकेण आत्मनः प्रत्यक्षतोऽनुपलभ्यमानत्वाच जन्मान्तर न भवतीति निश्चेतव्यमिति । यद्वा-नूनमिति सभावनायाम् परलोकः स्वर्गादिर्नास्तीति सभापयामि, यतः परलोके गतः कोऽपि नानागत्य वदति, तस्मात् प्रत्यक्षाभागन्नास्ति परलोक इति ! वा अथवा, अपि इहापि
अव सूत्रकार वाईसवा दर्शनपरीपहजय को बतलाते हैं'नथि नूण'-इत्यादि।
अन्वयार्थ—(परे लोए नूण नत्यि-परः लोक नून नास्ति) निश्चय से जन्मान्तर नहीं है-यह शरीर भूतात्मक है, इसलिये यह तो यहा ही विनिष्ट हो जाता है । इस शरीर मे जो चैतन्य वर्तमान है वह भी भूतों का धर्म होने से शरीर के साथ ही नाश को प्राप्त हो जाता है। दूसरे-शरीर से भिन्न आत्मा-नामक कोई पदार्थ है, यह किसी भी प्रत्यक्ष प्रमाण से सावित नहीं होता है अतः परलोकी (परलोक जाने वाला आत्मा) का अभाव होने से परलोक का अभाव स्वतः सिद्ध है, अर्थात् जन्मान्तर नही है । अथवा "नून" यह पद सभावना में भी प्रयुक्त किया जाता है इस अपेक्षा परलोक-स्वर्गादिक जो माने जाते हैं सो वे भी नहीं हैं, ऐसी सभावना होती है, क्यो कि कोई ऐसा तो है नही जो परलोक मे जाकर पश्चात् यहा आ कर यह कहे कि मै अमुक
હવે સૂત્રકાર બાવીસમા દર્શનપરીષહને જીતવાનું બતાવે છે– 'नथि नूण' त्यादि
सन्क्याथ-परे लोए नूण नत्थि-परलोक नून नास्ति निश्चयथी-भान्तर નથી આ શરીર ભૂતાત્મક છે, આ માટે તે તે અહિ જ વિનષ્ટ થઈ જાય છે. આ શરીરમાં જે ચૈતન્ય વર્તમાન છે તે પણ ભૂતને ધમ હોવાથી શરીરની સાથોસાથ નાશ પામે છે, બીજુ શરીરથી ભિન્ન આત્મા નામને કઈ પદાર્થ છે, એ કઈ પણ પ્રત્યક્ષ પ્રમાણથી ઓળખી શકાતા નથી આથી પરલોકીને (પરલોક જવાવાળો આત્મા) અભાવ હોવાથી પરલકને અભાવ સ્વત સિદ્ધ छे अर्थात् मान्तर नथी अथवा 'नून ' मा ५४ समानामा ५९ प्रयत કરાય છે આ અપેક્ષા પરલોક, સ્વર્ગાદિક જે માનવામાં આવે છે તે પણ નથી એવી સંભાવના થાય છે કેમકે, કેઈ એ તે છે જ નહી જે પરલોકમાં