Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रियदर्शिनी टीका अ०२ गा० २ सुधापरीपहजय
तस्मादादौ द्वाभ्या गाथाभ्या सुधापरीपहजय पाहमूलादिगिछापरिगए देहे, तवस्ती भिक्खू थामव ।
न छिदे न छिदविए, न पऐ ने पर्यावए ॥२॥ या-सुधापरिगते देहे, तपस्वी मितुः स्थामान् ।
न छिन्यात् न ठेदयेत् , न पचेत् न पाचयेत् ॥२॥ टोका-'दिगिंठापरिग०० " इत्यादि । तपस्वी-पष्ठाटमभक्तादितपोऽनुष्ठानवान् स्थामवान् मनोवल समन्वितः,मिक्षुःसाधुः, देहे-शरीरे, सुधापरिंगते-भुभुक्षया व्याप्ते सति, न छिन्या-कलादिक सय न नोटयेत् , न छेदयेत् नाप्यन्यैः फलादीना डेदन कारयेदित्यर्थ., न पचेतस्वय पाक न कुर्यात् , न च पाचयेत् अय. पाक न कारयेत् । इदमुपलक्षणम्
पथसमा नत्यि जरा, दारिद्द समो य परिभवो नत्वि।
मरणसम नत्थि भय, खुहासमा वेयणा नत्यि ॥ १॥ ___ मार्ग के समान जरा कोई नहीं है अर्थात्-निरन्तर चलनेवाला मार्ग गामी जराजनित दु.खों का अनुभव करता है । तथा दारिद्रय के समान अन्य कोई भी परिभव-अर्थात् अनादर नहीं है, तात्पर्य यह है-अन्य गुण के रहने पर भी दारिद्रय के अस्तित्व मे मनुष्य अनादर पाता है। तथा-मरण के समान भय नहीं है और न क्षुधा से बढकर कोई वेदना है, अर्थात् मनुष्य मरण के भयसे जितना डरता है उतना अन्य से नही । तया-क्षुधाजनित वेदना जितनी दुःखदायी होती है उतनी अन्य वेदना नहीं ॥१॥
पथसमा नत्यि जरा, दारिदयसमो य परिभगो नत्थि।
मरणसम नत्थि मय, सुहासमा यणा नत्थि ॥१॥ માગના સમાન જરા કોઈ નથી, અર્થાત્ નિરતર ચાલવાવાળા માગગામી જરાજનિત દુખોને અનુભવ કરે છે તથા દારિદ્રયના જેવું અન્ય કઈ પણ પરિભવ-અર્થાત્ અનાદર નથી તાત્પર્ય એ છે કે, અન્ય ગુણના હેવા છતા દારિદ્રયના અસ્તિત્વમાં માણસ અનાદર પામે છે તથા મરણના સમાન ભય નથી અને સુધાથી વધુ કોઈ વેદના નથી અર્થાત મનુષ્ય મરણના ભયથી એટલે કરે છે, એટલે બીજાથી નથી ડરતે, તથા–સુધાજનક વેદના જેટલી અસહ્ય डाय छ, तवा भी ना नथी. ॥१॥