Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 01
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराभ्ययनसूत्र ___ अनोत्तरमाह-हता ! इत्यादि । 'हन्त' इति स्वीकारावक., अय भावः'आशयिष्यामहे' 'शयिष्यामहे ' इत्यादिका भाषा निश्चयात्मकशन्दपयोगा भावान्नास्ति निश्चयात्मिका, या तु-'आशयिष्यामहे एर' 'शयियामह एव' इत्यादिरा निश्चयात्मिका सैनान्तरायसभाद् भविष्यकालविपया भाषा मृषाभवितुमर्हति । 'आशयिष्यामहे ' इत्यादी तु-शयनादि क्रियाया वक्तुरभिमायः "शयनादिक्रियाकरणस्य भावो मम पर्तते" इत्यादि रूप' सत्य एवास्तीति भवति पज्ञापनी । एकार्थविषये पचनाभिधानमपि आत्मनि गुरौ च शास्त्रानुमत, तस्माद् बहुवचनान्ततया प्रयुक्ताऽपि प्रज्ञापन्येव भाति । एवमामन्त्रण्यादिकाऽपि। 'आश्रयिष्यामहे " इत्यादिक भापा निश्चयात्मक शब्द के प्रयोग के अभाव से निश्चयात्मक नहीं हैं। ये निश्चयात्मक जर ही मानी जाती है कि जर इनके साथ निश्चयात्मक शब्दका प्रयोग किया हुआ होता है। जैसे-आश्रयिष्यामहे एच, शयिष्यामहे एव" इस प्रकारकी निश्चयास्मक भाषा में जो कि भविष्यत् कालको विषय करनेवाली हो अन्तराय फर्म के उदय से अपने अर्थकी पूर्ति की निश्चितता सदिग्ध रहती है अतः घही भाषा मृपावाद रूप मानी जाती है। "आश्रयिष्यामहे" इत्यादि भाषा मे तो शयनरूप क्रिया करने का भाव ही केवल वक्ता का रहा हुआ है अत उस अपेक्षा वह सत्य ही है। इसी अर्थ को मन में रख कर मुनिराज भविष्यत्काल के अर्थ मे भाव शब्द का प्रयोग करते हैं, जैसे-'कल स्वाध्याय करने का भाव है' अथवा-'तपस्या करने का भाव है' इत्यादि। एकवचन में भी व्याकरणसिद्धान्त के अनुसार मया नथी ये प्रा२नी मासान मा उत्तर छ, “आशयिष्यामहे "त्यादि ભાષાઓ નિશ્ચયાત્મક નથી અને નિશ્ચયાત્મક ત્યારે જ માનવામાં આવે કે જ્યારે એની સાથે નિશ્ચયાત્મક શબ્દને પ્રવેગ કરવામાં આવેલ હોય रम आशयिष्यामहे एव शयिष्यामहे एव-
मानी निश्चयात्म साषामा કે જે ભવિપત કાળને વિષા કરવાવાળી હોય અતરાય કમના ઉદયથી તેના અર્થની પૂર્તિની નિશ્ચિતતા સંદિગ્ધ રહે છે આથી તે ભાષા મૃષા 4। ३५ भानपामा सावे छ " आशयिध्यामहे" त्याहि भाषामा त उनारन। સુવાની ક્રિયા કરવાને ભાવ જ ફકત રહેલ છે આથી એ અપેક્ષાથી તે સત્ય જ છે આ જ અર્થને મનમા રાખી મુનિરાજ ભવિષ્યકાળના અથ મા ભાવ શબ્દને પ્રયોગ કરે છે જેમ કાલે સ્વાધ્યાય કરવાનો ભાવ છે” અથવા “તપસ્યા કરવાને ભાવ છે ” ઈત્યાદિ! એક વચનમાં પણ વ્યાકરણ સિદ્ધાતની.