Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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श्लोक-वातिक सर्वथा तन्मतध्वंसात्प्रमाणाभावतः क्वचित् । कथंचिन्नित्यताहेतुर्यदि तस्य विरुद्धता ॥ ६ ॥ कथंचिन्निष्क्रियत्वस्य साधनात् क्षणिकादिवत् ।
ततः स्युनिष्क्रियाः सर्वे भावाः स्यात्सक्रियाः सह ॥ ७० ॥ हां तो जिन पण्डितों ने कूटस्थ नित्य होने के कारण सम्पूर्ण पदार्थों का सर्वथा क्रियारहितपना वखान दिया है वे पण्डित भी इस हेतु करके दूषित कर दिये जा चुके हैं, इस ही कारण वे हर लिये गये हैं अर्थात्--प्राचार्यों ने क्षणिक-वादी बौदों के असत्-वाद का खण्डन करके जैसे पदार्थों के क्रियारहितपन को नहीं सधने दिया है, उसी प्रकार सर्वथा सत्-वाद का प्रत्याख्यान कर नित्यवादियों के यहाँ पदार्थों के निष्क्रियत्वकी सिद्धि नहीं हो पाती है। सभी प्रकारों से उन नित्य-वादियों के मत का खण्डन होजाता है, किसी भी घट, घोड़ा, गाड़ी, वाण, आदि पदार्थ में सर्वथा नित्यत्व या निष्क्रियत्व को साधने वाला कोई प्रमाण नहीं है । हाँ कथंचित् नित्यत्व उनमें अवश्य पाया जाता है, अतः यदि कथंचित् नित्यपन को हेतु कहोगे तब तो वह हेतु विरुद्ध होजावेगा, जैसे कि क्षणिकत्व, कृतकत्व, आदिक हेतु विरुद्ध हेत्वाभास होगये थे । क्योंकि कथंचित् नित्यपना हेतु तो सर्वथा निष्कियपन के विपरीत कथंचित् निष्क्रियपन का साधन करेगा। तिस कारण अब तक सि हुआ कि सम्पूर्ण पदार्थ "स्यात् ( कथंचित् ) निष्क्रिय” हैं और साथ ही “स्यात्सक्रिय" हैं, यह स्याद्वाद सिद्धान्त श्रेयस्कर है।
विरोधादिप्रसंगश्चन्न दृष्टे तदयोगतः।।
चैत्रैकज्ञानवत्स्वेष्टतत्त्ववद्वा प्रवादिनाम् ॥ ७१ ॥
स्वेष्टं तत्त्वमनिष्टात्मशून्यं सदिति ये विदुः । - सदसद्रपमेकं ते निराकुयुः कथं पुनः॥ ७२ ॥
पदार्थों को निष्क्रिय और साथ ही सक्रिय साधने में विरोध, वैयधिकरण्य, संशय, उभय, संकर, व्यतिकर, अनवस्था, अप्रतिपत्ति, अभाव, आदि दोषों का प्रसंग आवे, यह तो नहीं समझना क्योंकि प्रत्यक्षप्रमाण द्वारा अनेक धर्म-प्रात्मक देखे गये पदार्थ में उन विरोध आदि दोषों का योग नहीं है, जैसे कि बौद्ध प्रवादियों के यहाँ नोल, पीत, मादि अनेक प्रकार वाला एक चित्रज्ञान स्वीकार किया गया है, अथवा अन्य नैयायिक, मीमांसक, प्रादि प्रवादियों के यहाँ अपने अपने इष्ट तत्त्व जैसे स्वीकार किये जाते हैं । भावार्थ-श्लेष्म रोगी को दूध हानिप्रद है, और नीरोग पुरुष को दूध लाभप्रद है, साहूकार को दीपक इष्ट है, चोर को अनिष्ट है, चलतीहुई रेलगाड़ी में बैठा हुआ मनुष्य चल भी रहा है, यों क्रियासहित होरहा भी क्रियारहित है। बौद्धों ने अनेक प्राकार वाले एक चित्रज्ञान को इष्ट किया है, उस ज्ञान में नानापन के साथ एकपना विद्यमान है वैशेषिक या नैयायिकों ने