Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पंचम -अध्याय
प्रकार परिणामी पुद्गल द्रव्य या आत्मा का असद्भाव मानने पर परिणाम होना ही नहीं सम्भवता है, जैसे कि असत् निर्णीत किये गये खर-विषाग के तोक्ष्णता (पैनापन ) चिकनापन, काठिन्य, आदि परिणाम नहीं बन पाते हैं।
नापि परिणामाभावे परिणामि भवति खरविषाणवदिति परिणामपरिणामिनोरन्योन्याविनामावित्वादन्यतरापायेप्युभयासवप्रसक्तिः । ततो नित्यतापरिणामि द्रव्यमुपगंतव्यं तत्प. रिणामवत् ।
तथा परिणामी के बिना जैसे परिणाम नहीं, उसी प्रकार परिणाम का प्रभाव मानने पर परिणामी द्रव्य भी नहीं सम्भवता है, जैसे कि तीक्ष्णता आदि परिणामों के नहीं होने पर खरविषाण, वन्ध्यापुत्र, आकाश कुसुम आदि कोई परिणामी पदार्थ नहीं है । इस प्रकार परिणाम और परिणामी दोनों पदार्थों का परस्पर अविनाभाव ( समव्याप्ति ) होजाने के कारण दोनों में से किसी एक का प्रभाव मानने पर दोनों के भी असद्भाव का प्रसंग प्राजाता है, प्रात्मा के बिना ज्ञान नहीं ठहरता है, जब ज्ञान ही मर गया तो प्रात्मा भी जीवित नहीं रह सकता है. उष्णता के बिना अग्नि नहीं और अग्नि के बिना उष्णता नहीं ।
तिस कारण नित्यपन परिणाम का धारी द्रव्य स्वीकार करना चाहिये जैसे कि उस नित्य द्रव्य का परिणाम आवश्यक रूप से स्वीकार किया गया है, यों "उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्त सत्" या "तद्भावाव्ययं नित्यं" इस सूत्र से प्रारम्भ कर यहां तक के सूत्रों की संगति लगा लेनी चाहिये ।
___ अगले सूत्रका अवतरण इस प्रकार है, कि यद्यपि “सद्रव्यलक्षण उत्पादव्ययनौव्ययुक्तं सत्" यों द्रव्य का लक्षण पहिले ही कहा जा चुका है, तथापि भेद-विवक्षा को प्राधान्य देते हुये सूत्रकार महाराज दूसरे प्रकार के लक्षण से भी अग्रिम सूत्र द्वारा उस द्रव्य की प्रसिद्धि कराते हैं।
गुणपर्ययवद्रव्यम् ॥ ३९ ॥ गुण और पर्याय जिसके विद्यमान हैं, वह गुणवान् और पर्यायवान् पदार्थ द्रव्य कहा जाता है, गुण और पर्यायों से द्रव्य का अभेद होते हुये भी लक्षण की अपेक्षा कथंचित् भेद होजाने से मतुप प्रत्यय की उपपत्ति होजाती है, अतः सहभावो पर्याय होरहे गुणों और क्रमभावी स्वभाव होरहे षर्यायों को प्रविष्वग्भाव रूप से द्रव्य-धारे हुये हैं।
गुणाः वक्ष्यमाणलक्षणाः पर्यायाश्च तत्सामान्यापेक्षया नित्ययोगे मतुः । द्रवति द्रोष्यत्यदुद्रुवत्तांस्तान् पर्यायानिति द्रव्यमित्यपि न विरुध्यते । विशेषापेक्षया पर्यायाणां नित्ययोगाभावात्कादाचित्कत्वसिद्ध ।