Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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श्लोक-वार्तिक
तो द्रव्य नहीं है इस मिथ्याज्ञान की निवृत्ति के लिये सूत्रकार को इस सूत्र का कहना अनिवाय पड़ गया है यहाँ ही द्रव्य का लक्षण करते हुये वह संक्षेप से कहा जा सकता है।
के पुन: कालस्य गुणाः के च पर्यायाः प्रसिद्धा यतो गुरु पर्यायपद्व्यमिति प्रोक्तलक्षणयोगः सिध्धेत्तस्याद्रव्यत्व विज्ञाननिवृत्तिश्चत्यत्रोच्यते । -
यहां कोई जिज्ञासु पूछता है कि वे फिर बाल द्रव्य के गुण कौन से प्रसिद्ध हैं ? तथा काल की पर्यायें भी कौन कौन विख्यात हैं ? वतारो जिससे कि उस काल के साथ 'गुणपर्यय वद्रव्य" इस द्रव्य के निर्दोष लक्षण का संसर्ग हो जाना सिद्ध होजावे और उस काल को द्रव्यरहितपन के विज्ञान की निवृत्ति सध जाय ? इस प्रकार यहां प्रतिपित्सा प्रवर्तनेपर ग्रन्थकार द्वारा समाधान कहा जाता है।
निःशेषद्रव्यसंयोगविभागादिगुणाश्रयः। कालः सामान्यतः सिद्धः सूक्ष्मत्वाद्याश्रयो भिदा ॥२॥ क्रमवृत्तिपदार्थानां वृत्तिकारणतादयः ।
पर्यायाः संति कालस्य गुणपर्यायवानतः ॥३॥ सामान्य रूप से अखिल द्रव्यों के साथ संयोग होना या विभाग होना, सख्या. परिमाण, आदि गुणों का आश्रय होरहा काल द्रव्य सिद्ध है, और भिन्न भिन्न पने यानी विशेष प से कथन करने पर सूक्ष्मत्व, वर्तनाहेतुत्व, अचेतनत्व, आदि गुणों का आधार काल है। तथा क्रम क्रम से वर्त रहे पदार्थों की वर्तना कराने में कारणपना, इतर द्रव्यों के उत्पाद, व्यय, नौव्यों, की हेतुता स्वकीय अविभागप्रतिच्छेद, द्रव्यत्वपरिणति, एक प्रदेश अवगाह, आदि पर्याय काल द्रव्य की हैं । अतः गुणों और पर्यायों से समाहित होरहा काल द्रव्य है।
अर्थात्-लोकाकाश में सर्वत्र छऊ द्रव्य पाये जाते हैं कालाणुओं के साथ सामान्य रूप से सम्पूर्ण द्रव्योंका संयोग है विशेष २ जीव और पुद्गलों का यहाँ वहां जाने पर पूर्वसम्वद्ध कालाणुओं के साथ विभाग भी होजाता है हां धर्म, अधर्म, और प्राकाश के उन उन स्थलों पर नियत होरहे प्रदेशों से अन्य प्रदेशीय कालाणुओं का विभाग होरहा है। संयोग नाशक गुण को ही विभाग नहीं कहते हैं, किन्तु पृथग्भाव भी विभाग कहा जा सकता है इन गुणों के अतिरिक्त द्रव्यत्व, वस्तुत्व, अगुरुलघुत्व
आदि सामान्य गुण भी काल में विद्यमान हैं। काल में सूक्ष्मत्व, वर्तनाहेतुत्व आदि विशेष गृण हैं. तथा नवीन पदार्थ को जीर्ण करना, परिवर्तन कर देना, अचेतन वने रहना आदि पर्याय काल की प्रसिद्ध हैं अतः द्रव्य के दोनों लक्षणों की संघटना काल में है।
सर्वद्रव्यैः संयोगस्तावत्कालस्यास्ति सादिग्नादिश्च विभागश्वासर्वगतक्रियावद्रव्यैः संख्यापरिमाणादयश्च गुणा इति सामान्यतोऽशेषद्रव्यसंयोगस्य विभागादिगुणानां चाश्रयः कालः सिद्धः।