Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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छठा अध्याय
माया तैर्यग्योनस्येत्यायुषः कारणं मता । आर्तध्यानाद्विना नात्र स्वाभ्युपायविरोधतः ॥१॥
जो मायातिर्यकयोनिसम्बन्धी जीवों की आयुः का आस्रावक कारण मानी गयी है । वह यहाँ प्रकरण में आर्तध्यान के विना नहीं संभवती है। क्योंकि ऐसा नहीं मानने पर अपने स्वीकृत सिद्धान्त से विरोध आजावेगा । अर्थात् आर्तध्यान से विशिष्ट होरहा मायाचार तिर्यंच आयु का आस्रव करावेगा इससे लोक चातुर्य, सभादक्षता, धर्मप्रभावना के लिये किये गये मायाचार का विवेक हो जाता है । न्याय शास्त्र में खण्डन मण्डन करने के लिये कई प्रकार के उपाय रचे जाते हैं। अभद्र, क्रूर, अभिमानी, मायाचारी, दम्भी जीवों को धर्ममार्ग या न्यायमार्ग समझाने के लिये कितनी ही दक्षतायें करनी पड़ती हैं । चौथे, पाँचवें, छठे गुणस्थान वाले जीवों के कतिपय चातुर्य पाये जाते हैं । हाँ सातवें से लेकर ऊपरले गुणस्थानों में ध्यान निमग्न अवस्था में कोई बुद्धि पूर्वक दक्षता का उपयोग नहीं है । अतः आर्तध्यान पूर्वकं हुआ मायाचार तिर्यक आयु का आस्रव है। जो कि तीव्र मायाचार पहिले, दूसरे इन दो गुणस्थानों में पाया जा सकता है ।
कहा जाता है।
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अपकृष्टं हि यत्पापध्यानमार्त्तं तदीरितं । निंद्य धाम तथैवाप्रकृष्टं तैर्यग्गतिस्ततः ॥२॥ प्रसिद्धमायुषो नैकप्रधानत्वं प्रमाणतः । तैर्यग्योनस्य सिद्धान्ते दृष्टेष्टा यामबाधितं ॥३॥
जो पापस्वरूप आर्तध्यान जिस कारण से अपकृष्ट कहा गया है उसी कारण से वह जीवों का निंद्यस्थान तिसही प्रकार समझा जाता है। उस आर्तध्यान से जीवों की तिर्यग्गति हो जाती है । सिद्धान्त में तिर्यग्योनिसम्बन्धी आयुः का प्रधान कारण माया कही है। यह बात प्रमाणों से प्रसिद्ध है । प्रत्यक्ष और अनुमान यह सिद्धान्त अबाधित है ।
अब क्रमप्राप्त मनुष्य सम्बन्धी आयुः के आस्रव हेतु का निरूपण करने के लिये अगिला सूत्र
अल्पारंभपरिग्रहत्वं मानुषस्य ॥१७॥
अल्प आरंभ से सहितपना और अल्प परिग्रह से सहितपना तो मनुष्यों की आयुः का आस्रवण
नारका युरास्रवविपरीतो मानुषस्तस्येत्यर्थः । किं तदित्याह
नरक आयु के आस्रव बहुत • आरंभ और बहुत परिग्रह से सहितपना है । उस नरकआयु से विपरीत यह मनुष्य आयु है । उसका आसव अल्प आरंभ रखना और अल्प परिग्रह सहितपना है। यह इस सूत्र का अर्थ है । कोई पूँछता है कि वह अल्प आरंभ परिग्रह सहितपना क्या है ? या कैसा है ?
प्रश्न उतरने पर ग्रन्थकार वार्त्तिकों द्वारा उत्तर कहते हैं।