Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

View full book text
Previous | Next

Page 654
________________ सप्तमोऽध्याय चोर करके लाये गये द्रव्य का ग्रहण कर लेना तदाहृतादान है । उचित रीति से अन्य प्रकार अन्याय द्वारा दान या ग्रहण करना अतिक्रम बोला जाता है । विरुद्धराज्य के होते सन्ते जो अतिक्रम करना है वह विरुद्धराज्यातिक्रम है । झूठे नाप, तोल, आदि करके क्रय विक्रय का प्रयोग करना हीनाधिकमानोन्मान है, यहाँ आदि पद से घोड़े की, मोतियों की जल की गर्मी की बिजली की वर्षा की भाप की पाण्डित्य आदिकी भिन्न-भिन्न प्रकारों से होने वाली नाना नाप तोलों का ग्रहण है। कृत्रिम ( नकली) सोना, च बनाना या इन का दूसरों को ठगने के लिये व्यापार करना प्रतिरूपकव्यवहार है । यहाँ कोई पूंछता है कि तीसरे अचौर्य व्रत के स्तेन प्रयोग आदि पाँच अतीचार भला किस युक्ति से सिद्ध हुये मान लिये जाँय ? ऐसी जिज्ञासा प्रर्वतने पर ग्रन्थकार अग्रिम वार्तिक को कह रहे हैं। प्रोक्ताः स्तेनप्रयोगाद्याः पंचास्तेयव्रतस्य ते । स्तेयहेतुत्वतस्तेषां भावे तन्मलिनत्वतः॥१॥ अचौर्य व्रत के वे चोर प्रयोग आदिक पांच अतीचार सूत्रकार महाराज ने बहुत अच्छे ढंग से कह दिये हैं क्योंकि वे स्तेनप्रयोग आदिक तो चोरी के परम्परा हेतु हो रहे हैं। उन चोर प्रयोग आदि के होते सन्ते उस अचौर्यव्रत प्रयक्त हई आत्मविशद्धि को मलिनता हो जाती है। एक अंश अचौर्यव्रत की रक्षा बनी रहती है कि मैंने मात्र चोरी का नौ भंगों से प्रयोग करना बता दिया है चोरी को नहीं की है इत्यादि विचार अनुसार इन स्तेन आदि प्रयोग को अतीचारपने की व्यवस्था है। अय चतुर्थस्याणुव्रतस्य केऽतीचारा इत्याह; अब चौथे स्वदारसंतोष या ब्रह्मचर्याणुव्रत के अतीचार कौन कौन हैं ? ऐसी जिज्ञासा उपजने पर सूत्रकार महाशय इस अग्रिम सूत्र को कहते हैं। परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीतापरिगृहीतागमनानंगक्रीडाकामतीव्राभिनिवेशाः ॥२८॥ ___अपनी संतान के अतिरिक्त अन्यदीय पुत्र या कन्याओं का विवाह करना पहिला अतीचार है। परपुरुषों के साथ गमन यानी क्रीड़ा करने की जिन स्त्रियों की टेव है वह खोटी स्त्री इत्वरिका कही जाती है वह सधवा हो या विधवा हो किसी पति के द्वारा गृहीत हो चुकी सन्ती इत्वरिका परिगृहीता मानी गई है । ऐसी परिगृहीत इत्वरिका के साथ जो गमन करना अर्थात् उसके जघन भाग, स्तन, मुख, उदर आदि का निरीक्षण करना, सराग भाषण करना, हाथ, भ्रकुटी, चक्षुः आदि करके संकेत करना इस प्रकार रागी होकर अनेक रमण कुचेष्टायें करना, द्वितीय अतीचार है । परपुरुषों के साथ गमन करने की देव ( आदत ) को धार रही जो किसी पति कर के गृहीत नहीं हो चुकी है ऐसी गणिका या पुंश्चली स्त्री इत्वरिका अपरिग्रहीता है। परपुरुषगामिनी अपरिग्रहीत वेश्या या पंश्चली ( खानगी), स्त्रियों में स्तन निरीक्षण, हास्य, उपरिष्टात्क्रीड़ायें आदि कुक्रियायें करना तीसरा अतीचार है । स्व पुरुप या स्व स्त्री में भी अंग यानी जननेन्द्रिय के अतिरित अंगों में क्रीड़ा करना चौथा अतीचार है। स्व स्त्री में भी काम रति का प्रवृद्ध परिणाम होना यानी संतुष्ट नहीं होकर कामक्रीड़ा में अविराम प्रवृत्ति करना कामतीब्राभिनिवेश नाम का पाँचवां अतीचार है। यों परविवाह करण १ इत्वरिकापरिगृहीतागमन २ इत्वरिका अपरिगृहीता गमन ३ अनंगक्रीडा ४ कामतीव्राभिनिवेश ५ ये स्वदारसंतोष या परदारनिवृत्तिव्रत के पांच अतीचार है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692