Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 653
________________ ६३२ श्लोक-वार्तिक प्रकार दम्पतियों के रहस्य की भी सच्ची ही बातें कही हैं, झूठी बात एक भी नहीं कही है इत्यादि, यों व्रत की रक्षा कर रहा भी व्रत का पूर्णपालन नहीं कर सका है। यथाद्यव्रतस्य मालिन्यहेतुत्वाद्धंधादयोऽतीचारास्तथा द्वितीयस्य मिथ्योपदेशादयस्तदविशेषात् । तन्मालिन्यहेतुत्वं पुनस्तेषां तच्छुद्धिविरोधित्वात् । जिस प्रकार सब के आदि में कहे गये अहिंसा व्रत के मालिन्य का कारण हो जाने से बंध, वध आदिक पांच अतीचार हैं । उसी प्रकार दूसरे सत्याणुव्रत के मिथ्योपदेश आदिक पांच अतीचार हैं। क्योंकि उस मलिनता के कारण हो जाने का दोनों में कोई अन्तर नहीं है। हां उन मिथ्योपदेश आदिकों को व्रत की मलिनता का कारणपना तो उस सत्य करके हुई आत्मविशुद्धि का विरोधी हो जाने से नियत है। अथ तृतीयस्य व्रतस्य केऽतीचारा इत्याह; पहिले और दूसरे व्रतों के अतीचार ज्ञात हो चुके हैं अब तीसरे अचौर्य व्रत के अतीचार कौन हैं ? ऐसी निर्णेतु इच्छा प्रवर्तने पर सूत्रकार महोदय अग्रिम सूत्र को कह रहे हैं। स्तेनप्रयोगतदाहृतादानविरुद्धराज्यातिक्रमहीनाधिकमानोन्मानप्रतिरूपकव्यवहाराः ॥२७॥ ___ कोई पुरुष स्वयं तो चोरी नहीं करता है किन्तु दसरे स्तेन यानी चोर को प्रेरणा कर देता है यह स्तेनप्रयोग है। उन चोरों करके चुराये गये बहुमूल्य द्रव्य को अल्पमूल्य द्वारा क्रय करने के अभिप्राय से ग्रहण कर लेना तदाहृतादान है । उचित न्याय से अन्य प्रकारों करके देना लेना अतिक्रम कहा जाता है, विरुद्ध राज्य के होते सन्ते अतिक्रम करना, राजा या स्वामी की घोषणा का उल्लंघन कर अन्य प्रकारों से लेना देना जैसे कि कर देने योग्य अपने पदार्थ को महसूल बिना दिये ही राज्य से बाहर कर देना, पूरी टिकट के स्थान पर आधी टिकट और आधी टिकट वाले की टिकट नहीं खरीदना, रेलगाड़ी में सामान अधिक ले जाना, इत्यादि विरुद्धराज्यातिक्रम है । नापने, तोलने, के लिये काष्ठ, पीतल आदि के बनाये हुये सेर, ढय्या, पंसेरी आदि नाप या तखरी के पउआ, दुसेरी, आदि बांट एवं गज, फुटा, आदि को न्यून या अधिक रखना हीनाधिकमानोन्मान है। न्यून हो रहे मान, उन्मानों से खोटा बनियां दसरों के लिये देता है और अधिक हो रहे मान, उन्मानों , करके वह बनियां अपने लिये नापता, तोलता है कृत्रिम बनाये गये नकली सोने, चांदी, मोती, घृत, दध, चून आदि करके ठगने के विचार अनुसार व्यवहार करना प्रतिरूपक व्यवहार है ये पांच अचौर्याणुव्रत के अतीचार हैं। मोषकस्य त्रिधा प्रयोजनं स्तेनप्रयोगः। चोरानीतग्रहणं तदाहृतादानं, उचितादन्यथा दानग्रहणमतिक्रमः, विरुद्धराज्ये सत्यतिक्रमः विरुद्धराज्यातिक्रमः, कूटप्रस्थतुलादिभिः क्रयविक्रयप्रयोगो हीनाधिकमानोन्मानं, कृत्रिमहिरण्यादिकरणं प्रतिरूपकव्यवहारः। कुतोऽमी तृतीयस्य व्रतस्यातीचारा इत्याह; चोरी करने वाले जीव को तीन प्रकार यानी मन, वचन, या काय करके अथवा दूसरे पुरुष द्वारा प्रयुक्त कराता है, कृत, कारित, अनुमोदना अनुसार प्रेरणा करता है वह कृत्यतः स्तेनप्रयोग है।

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