Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 659
________________ ६३८ श्लोक वार्विक तीन अतिक्रम या क्षेत्रवृद्धि हो जाती हैं । गृहीत मर्यादा का पीछे स्मरण नहीं रहना या न्यून अधिक रूप स्मरणान्तर कर लेना स्मृत्यन्तराधान है । कस्मात् पुनरमी प्रथमस्य शीलस्य पंचातीचारा इत्याह; किस कारण से फिर पहिले दिग्विरतिशील के वे ऊर्ध्वातिक्रम आदि पाँच अतीचार संभव जाते हैं ? ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर ग्रन्थकार इस समाधान वचन को कहते हैं । ऊध्वोतिक्रमणाद्याः स्युःशीलस्याद्यस्य पंच ते। तद्विरत्युपघातित्वात्तेषां तद्धि मलत्वतः ॥१॥ आदि में हो रहे दिग्विरति शील के वे ऊर्ध्व दिशा अतिक्रमण आदिक पाँच अतीचार संभव जाते हैं ( प्रतिज्ञा ) क्यों कि वे उस दिग्विरति व्रत का ईषद्घात करने वाले हैं । तिसकारण नियम से वे उसके मल हैं । अतः व्रत का समूलचूल घात नहीं कर देने से और व्रत के पोषक भी नहीं होने से उन मलिनता के कारणों को व्रत का एकदेश भंग कर देने की अपेक्षा अतीचार कहा गया है। अथ द्वितीयस्य केऽतीचारा इत्याह: अब दूसरे कहे गये देशविरति के अतीचार कौन कौन हैं ? ऐसी संगति अनुसार बुभुत्सा प्रवतने पर सूत्रकार इस अगले सूत्र को कह रहे हैं। प्रानयनप्रेष्यप्रयोगशब्दरूपानुपातपुद्गलःक्षेपा ॥३१॥ अपने संकल्पित देश में स्थित हो रहा भी श्रावक प्रतिषिद्ध देश में रक्खे हुये पदार्थों को प्रयोजनवश किसी से मंगा कर क्रय, विक्रय आदि करता है यह आनयन है। परिमित देश के बाहर स्वयं नहीं जाकर भृत्य आदि द्वारा इस प्रकार करो, यों प्रेष्यप्रयोग करके ही अभिप्रेत व्यापार की सिद्धि कर लेना प्रेष्यप्रयोग है । देशावकाशिक व्रत जब हिंसा से बचने के लिये लिया गया है तो स्वयं करना और दसरे से कराना एक ही बात पड़ती है, प्रत्युत स्वयं गमन करने में कुछ विवेकपूर्वक ईर्यापथ शुद्धि भी हो सकती थी किन्तु दसरे चाकरों से ईर्यासमिति नहीं पल सकेगी यों यह प्रेष्यप्रयोग अतीचार हो जाता है। सर्वत्र व्रत रक्षा की अपेक्षा रखते हुये पुरुष का व्रत में दोष लग जाने से अतीचारों की व्यवस्था मानी गई है । निषिद्ध देश में बैठे हुये कर्मचारी पुरुषों का उद्देशकर खांसना, मठारना, टेलीफोन भेजना शब्दानुपात है। अपने रूप को दिखला कर शीघ्र व्यापार साधने के अभिप्राय से रूपानुपात दोष हो जाता है। इसमें कपट का संसर्ग है। गृहीत देश से बाहर व्यापार करने वालों को प्रेरणा करने के लिये डेल, पत्थर आदि का फेंक देना, टेलीग्राफ करना पुद्गलक्षेप है । ये पाँच देशविरतिशील के अतीचार हैं। तमानयेत्याज्ञापनमानयनं, एवं कुर्विति विनियोगः प्रेष्यप्रयोगः, अभ्युत्कासिकादिकरणं शब्दानुपातः, स्वविग्रहप्ररूपणं रूपानुपातः, लोष्ठादिपातः पुद्गलक्षेपः। कुतः पंचैते द्वितीयस्य शीलस्य व्यतिक्रमा इत्याह अपने संकल्प किये गये देश में स्थित हो रहे देशवती का प्रयोजन के वश से उस किसी विवक्षित पदार्थ को को लाओ इस प्रकार मर्यादा के बाहर देश से मंगा लेने की आज्ञा देना आनयन दोष है। तुम इस प्रकार करो यों परिमित देश से बाहर स्वयं नहीं जाकर किंकर को भेज देने से प्रेष्य प्रयोग द्वारा

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