Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri

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Page 651
________________ श्लोक-वार्तिक उन व्रतों या अवीचारों में अहिंसाव्रत के बन्ध आदिक पाँच अतीचार आचार्य परंपरा द्वारा सुने जा रहे माने गये हैं ( प्रतिज्ञा ) क्योंकि वे बन्ध आदिक तो क्रोध, लोभ आदि कषाय भावों से उपजते हैं। और क्रोध आदि उस अहिंसाव्रत के मल हैं । अंतरंग मलों अनुसार हुई बहिरंग की बन्धन, वध आदि निन्द्यक्रियायें अतीचार मानी जाती हैं यों अनुमान प्रयोग बना दिया है । ६३० पूर्ववदनुमानप्रयोगः प्रत्येतव्यः ॥ जिस प्रकार सम्यग्दृष्टि के अतीचारों का निरूपण करते हुये “मालिन्यहेतुत्वात् ” हेतु देकर पूर्व में अनुमान का प्रयोग रचा था उसी प्रकार यहां अहिंसाव्रत के अतीचारों में भी अनुमान का प्रयोग इस वार्त्तिक अनुसार समझ लेना चाहिये । अथ द्वितीयस्याणुव्रतस्य केतीचाराः पंचेत्याह- अब दूसरे सत्य अणुव्रत के पांच अतीचार कौन से हैं ? ऐसी निर्णिनीषा प्रकट होने पर महाविद्वान् सूत्रकार समाधान कारक अग्रिम सूत्र को कहते हैं । मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्र भेदाः ॥२६॥ इन्द्रपदवी या तीर्थंकरों के गर्भ अवतार, जन्म अभिषेक, साम्राज्य प्राप्ति, चक्रवर्तित्व, दीक्षा कल्याण अथवा मण्डलेश्वर आदि राज्य, सर्वार्थसिद्धिपर्यन्त अहमिन्द्र पद, ये सब सांसारिक सुख अभ्युदय कहे जाते हैं तथा तीर्थंकरों के केवलज्ञान कल्याण, मोक्ष कल्याणक अनन्तचतुष्टय या अन्य सामान्य केवलियों की निर्वाण प्राप्ति ये सब निःश्रेयस माने जाते हैं। अभ्युदय और निःश्रेयस को साधने वाले क्रियाविशेषों में अज्ञानादि के वश हो कर अन्य को अन्य प्रकारों से प्रवृत्त करा देना या ठग लेना मिथ्योपदेश है । स्त्री पुरुषों या मित्रों आदि कर के एकान्त में की गयी या कही गयी विशेषक्रिया को गुप्तरीति से ग्रहण कर दूसरों के प्रति प्रकट कर देना रहोभ्याख्यान है । अन्य के द्वारा नहीं कहे गये विषय को उसने यों कहा था या किया था इस प्रकार ठगने के लिये जो द्वेषवश लिख दिया जाता है वह कूटलेख क्रिया है । सोना, चाँदी, रुपया, मोहरें किसी के यहाँ धरोहर रख दी गयीं उन कीपू री संख्या को भूल कर पुनः ग्रहण करते समय अल्पसंख्यावाले द्रव्य को माँग कर ग्रहण कर रहे पुरुष के प्रति सोने आदि का अधिक परिमाण जान कर भी जो थोड़े द्रव्य की स्वीकारता दे देना है वह न्यासापहार है । अर्थ, प्रकरण, अंगविकार आदि करके दूसरों की चेष्टा को देखकर ईर्ष्या, लोभ, आदि के वश होकर जो अन्यपुरुषों के सन्मुख उस गुप्त मन्त्र का प्रकट कर देना है वह साकार मन्त्रभेद है । यों ये मिथ्योपदेश आदिक उस सत्यव्रत के पाँच अतीचार हैं। यहां भी सत्यव्रत का एक देश भंग और एक देश रक्षण होता रहने से अतीचारों की व्यवस्था है | सच्छास्त्रान्यथा मिथ्यान्यथाप्रवर्तनमतिसंधापनं वा मिथ्योपदेशः सर्वथैकान्तप्रवर्तनवत्, कथनवत् परातिसंधायकशास्त्रोपदेशवच्च, संवृतस्य प्रकाशनं रहोभ्याख्यानं, स्त्रीपुरुषानुष्ठितगुप्तक्रियाप्रकाशनवत्, परप्रयोगादन्यानुक्तपद्धतिकर्म कूटलेख क्रिया एवं तेनोक्तमनुष्ठितं चेति वंचनाभिप्राय लेखनवत्, हिरण्यादिनिक्षेपे अल्पसंख्यानुज्ञावचनं न्यासापहारः शतन्यासे नवत्यनु

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