Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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सप्तमोऽध्याय
५५१ को पुष्टि मिलती है । प्रत्येक बात को बहुत विचार कर बोलना चाहिये । अत्यल्प, गंभीर, सारभूत, हितवचन कहने चाहिये।
कथमित्याह
उक्त सूत्र के अभिमत को किस प्रकार निर्णीत कर लिया जाय ? ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर ग्रन्थकार भावनाओं के अनुभव को कहते हैं।
क्रोधलोभभयं हास्यं प्रत्याख्यामनृतोद्भवं ।
तत्त्वानुकूलमाभाषे द्वितीयव्रतशुद्धये ॥१॥ सत्यव्रती बार बार विचार करता है कि अनृत से उत्पन्न हुये या अनृत ( झूठ ) को उत्पन्न करने वाले क्रोध, लोभ, भय और हास्य को मैं छोड़ देवू तथा दूसरे सत्यव्रत की शुद्धि के लिये तत्त्व व्यवस्था अनुकूल चारों ओर भाषण करूं । योंभावना रखता हुआ सत्यवादी अपने व्रत को शुभभावनाओं अनुसार पुष्ट कर लेता है। ___ इत्येवं पौनःपुन्येन चिंतनात् ।
यों इस प्रकार पुनः पुनः रूप से चिन्तन करने से उपात्त किया गया सत्यव्रत परिपूर्ण रूप से स्थिर हो जाता है।
तृतीयस्य व्रतस्य का भावना इत्याह;
अब तीसरे अचौर्य व्रत की भावनायें पांच कौन-सी हैं इस प्रकार जिज्ञासा प्रवर्तने पर सूत्रकार भगवान् उत्तरसूत्र को कहते हैं।
शन्यागारविमोचितावासपरोपरोधाकरणभक्ष्यशुद्धिसधविसंवादाः पंच ॥६॥
___ सूने घरों में निवास करने का अभिप्राय रखना, दूसरों के द्वारा विशेषतया छोड़ दिये गये स्थानों में निवास करने की इच्छा रखना, दूसरों के प्रति हठ आदि द्वारा उपरोध नहीं करना, भिक्षासमुदाय की शुद्धि रखना, साधर्मी भाइयों के साथ विसंवाद नहीं करना, ये पांच अस्तेय व्रत की भावनायें हैं । अर्थात् पशु, पक्षी, स्त्री, किसान आदि जीवों से अथवा भूषण, वस्त्र, भोजन, पान, रुपया पैसा आदि जड़ पदार्थों से रीते हो रहे ऐसे पर्वत की गुफा, वृक्षों के कोटर, सूनी वसतिका आदि स्थानों में निवास करना, दूसरों के छोड़े हुये स्थान में ठहरना, शिला, पुस्तक, काष्ठासन आदि को ग्रहण कर दूसरों का उपरोध नहीं करना, आचार शास्त्र अनुसार भिक्षाओं को शुद्ध लेना, यह तेरा शास्त्र है, यह मेरा स्थान है आदि टंटों को साधर्मियों के साथ नहीं करना ये पांच भावनायें अचौर्य व्रत को पुष्ट करती हैं। इनके विपरीत आचरण करने से साक्षात् या परम्परया अचौर्यव्रत का भंग हो जाता है।
कथमित्याह
अचौर्य व्रत की उक्त पांच भावनाओं को किस प्रकार भाया जाय ? ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर प्रन्थकार दो वार्तिकों द्वारा उत्तर कहते हैं।
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