Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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छठा - अध्याय
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अर्थापत्ति के माथे नहीं मढ़ देना चाहिये जो पदार्थ अविनाभाव अनुसार परस्पर की अपेक्षा को लिये हुए अन्यथानुपपन्न हैं उनमें कभी व्यभिचार नहीं आता है अतः इस सूत्र का पर शब्द या पूर्व सूत्र का आय शब्द व्यर्थ है यह कश्चित् का आक्षेप खड़ा रहता है ।
पूर्वपरयोरंतराले मध्यमस्यापि संभवान्नाविनाभाव इत्यप्ययुक्तं, मध्यमस्य पूर्वपरोभयापेक्षत्वात् पूर्वमात्रापेक्षया तस्य परत्वोपपत्तेः परमात्रापेक्षया पूर्वत्वघटनादव्यवहितयोः पूर्वपरयोरविनाभावसिद्धिः ।
यहाँ आद्य और पर के अविनाभाव को बिगाड़ता हुआ कोई पण्डित यदि कश्चित् के ऊपर यह कटाक्ष करे कि पूर्व और पर के अन्तराल में मध्यम पदार्थ की भी सम्भावना है अतः पूर्व और पर का अविनाभाव नहीं ठहरा । कश्चित् कहते हैं कि यह कटाक्ष करना भी अयुक्त है क्योंकि मध्यम तो पूर्व, पर, इन दोनों की अपेक्षा रखता है अतः पूर्व पर दोनों के साथ भले ही मध्यम का अविनाभाव समझ लिया जाय एतावता पूर्व और पर के अविनाभाव में कोई क्षति नहीं पड़ती है। एक बात यह भी है कि मध्यम भी पूर्व और पर दोनों में अन्तःप्रविष्ट हो जाता है जैसे कि भूत भविष्य कालों में वर्त - मान काल गर्भित हो जाता है केवल पूर्व की अपेक्षा से उस मध्यम को पर पना है और केवल पर की अपेक्षा से मध्यम को पूर्वपना घटित होरहा है यों अव्यवहित होरहे पूर्व पर दोनों का ही अविनाभाव सिद्ध हुआ अभीतक कश्चित् ही कहे जा रहे हैं।
परशब्दस्य संबंधार्थत्वान्नानर्थक्यमित्यपि न साधीयो निवर्त्याभवात् । परसंबंधमधिकरणमिति वचनं हि स्वसंबंधमधिकरणं निवर्तयति न चेह तदस्ति, तथावचनाभावात् । एतेन प्रकृष्टवाचित्वं परशब्दस्य प्रत्युक्तं तन्निवर्त्यस्याप्रकृष्टस्यावचनात् । इष्टवाचित्वमपि तादृशमेवानिष्टस्य निवर्त्यस्याभावात् । न च प्रकारातरमस्ति यतोऽत्र परवचनमर्थवत्स्यादिति ।
सूत्रकार द्वारा पर शब्द का व्यर्थ ही निरूपण होजाने पर यदि कोई यों लीपा पोती करे कि यह पर शब्द का प्रयोग तो सम्बन्ध के लिये है बिना सम्बन्ध के मारा मारा फिरता । अतः व्यर्थ नहीं है । अर्थात् पर शब्द नहीं होता तो इस सूत्र का सम्बन्ध नहीं होसकता था “वाक्यं तु संबन्धाभिधेयवद्भवति” । अथवा सूत्रकार को निर्वर्तना आदि का अजीवाधिकरण से सम्बन्ध करना है अतः सम्बन्ध करने के लिये यहाँ पर शब्द कहा गया है। कश्चित् कहते हैं कि पर शब्द की सार्थकता के लिये किया गया यह समाधान भी अधिक श्रेष्ठ नहीं है क्योंकि कोई निवृत्ति करने योग्य या व्यवच्छेद होता तब तो किसी पद का प्रयोग करना सार्थक है । जब यहाँ कोई निर्वर्तनीय नहीं है तो बिना प्रयत्न के हो निर्वर्तना आदि का अजीवाधिकरण के साथ सम्बन्ध जुड़ जायेगा । संरम्भ आदि जीवाधिकरण के साथ इन निर्वर्तना आदि के सम्बन्ध होजाने का भय तो रहा नहीं क्योंकि पूर्व सूत्र में संरम्भ आदि के साथ आद्य शब्द पहिले से ही लग बैठा है तिस कारण परिशेष से यहाँ अजीवाधिकरण ही लागू होगा पर शब्द व्यर्थ पड़ा । बात यह है कि पर शब्द का प्रयोग करने पर पर सम्बन्धी अधिकरण यह कथन करना नियमसे स्व के साथ सम्बन्ध कर रहे अधिकरण की तो निवृत्ति कर सकता है अन्य को नहीं किन्तु यहाँ वह स्व अधिकरण का प्रकरण ही नहीं है क्योंकि तिस प्रकार स्व अधिकरण का कथन नहीं किया गया है । कश्चित्
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