Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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लोक-वार्तिक
बैठी हुई सम्बिति को उन कार्यकारणों का सम्वेदन होनेपर भी जैसे सांशपना नहीं माना गया है उसी प्रकार अनेक परमाणुप्रो के या छःऊ दिशा के छः परमाणुओं के मध्य में अधिष्टित हो रही परमाणु का भी अपना सिद्ध होजाता है, अतः उन अनेकों या सातों अथवा दो आदि- सम्पूर्णं परमाणुत्रों का विशेष रूप से होरहा समुदाय भी अनेक परमाणुओं का वस्तुभूत परिणाम होरहा बंध पदार्थ प्रसिद्ध हो ही जाता है ' भावार्थ - निरंश परमाणुओं का सांश बंध हो गया। शक्ति की पेक्षा परमाणुओं में सपना भी अभीष्ट किया जा चुका है, यदि परमाणु में सांपना नहीं होता तो कार्य स्कन्धों में सांशपना कहां से श्राता ? सन्तान, समुदाय, प्र ेत्यभाव, को साधने के लिये बौद्ध भी कुछ न कुछ उपाय रचते हैं । वह बंध का प्रयोजक होसकता है अतः सूत्रकार का यह सिद्धान्त निर्दोष है कि स्निग्धपन और रूक्षपन से बंध होजाता है ।
रूखापन तो विभाग कर देगा, बांधेगा नहीं ऐसी शंका नहीं करना क्योंकि वणिग्वृत्ति के रूखे व्यवहार से बंध जाते हैं "भय विन होय न प्रीति" की नीति इसी बूते पर डटी ई है। पुरुष गीले चूना में कुछ ककरी, वजरी. रूखा, वालू रेत डाल कर उसको दृढ़ बांधने वाला बना लिग जाता है कहीं कहीं चिकनापन बंध में उल्टा विघ्न डाल देता है थाली में घी लगा देने से पुनः खांड की रफी थाली से चुप नहीं पाती है, चिकनी कीच में पांव रपट जाता है, रूखी रोटी में जितना शीघ्र दूध या पानी मिल जाता है चुपड़ी रोटी में उतना शीघ्र दूध या पानी नहीं बंधने पाता है तभी तो रुखी रोटी से चुपड़ी रोटी पचने में भारी है। जल द्वारा लड्डू ईंट, पुल, भींत, आदि के बंधज़ाने पर भी मनुष्य उनका दृढ़बंधन होजाने के लिये रूखेपन की प्रतीक्षा किया करते हैं। कई चिकने पदार्थ बंधे हुये पदार्थों को पृथग्भूत कर देते हैं, रूखापन उनको जोड़ देता है। पौष्टिक प्रौषधियों या धातुयों, उपधातु अथवा दूध श्रादि पदार्थों में इस खेल को हम देखते हैं ।
माना कि रूखेपने से स्कन्धों का कदाचित् विभाग भी होजाता है, किन्तु चिकने तेल या घी के बीच में डाल देनेपर भी अनेक पदार्थ विभक्त होजाते हैं । पहाड़ों में पानी भरते भरते बड़ी शिलाओं के खण्ड होजाते हैं, दूध खांड का मैल विभक्त होजाता है अण्डी के तेल से प्रान्तों में घुसा हुआ मल हटा दिया जाता है " तृणानि दहतो वन्हेः सखा भवति मारुत । स एव दीपनाशाय कृशे कस्यास्ति सौहृदं ।” चिकनी चुपड़ी, कांचकी शिला या बढ़िया चटाईपर सांप नहीं चल पाता है, अधिक चिकनी सड़क पर घोड़ा या मनुष्य भी रपट जाता है। वस्तुतः देखा जाय तो गीलेपन की प्रधानता से स्नि
ता और आर्द्रता ( गीलापन ) के प्रभाव से या शुष्कता से रूखापन व्यवस्थित है । वस्तुनों की विभिन्न परिणतिश्नों के अनेक कारण हैं जो कि लोक में विदित हो रहे हैं। तदनुसार परमाणुप्रों के बंधने में आर्द्रता और रूखापन हेतु माना गया है " अनेकान्तो विजयतेतरां "" " सिद्धिरनेकान्तात् ' स च सर्वपरमाणुनामविशेषेण प्रसक्त इति न्यक् गुणानामनिष्टगुणानां बंधप्रति
"
धार्थमाह ।