Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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श्लोक-वातिक
____ जघन्य यानी अन्त्य के समान जो है वह जघन्य है इस प्रकार जघन्य शब्द का शाखादि गण में पाठ होने से जघन्य शब्द की सिद्धि होजाती है। शाखा, मुख, शृङ्ग, अघन्, मेघ, आदि शब्द शाखादिगण में हैं, अतः “शाखादिभ्यो यः" इस सूत्र से य प्रत्यय कर " जघन्यमिव जघन्यं ' यों निरुक्ति करते हुये जघन्य शब्द बना लिया जाता है । जिस प्रकार कि शरोस्के अवयवों में जघन निकृष्ट अवयव है, उसी प्रकार अन्य भी जो निकृष्ट है, बह जघन्य कहा जाता है, शाखादित्व, स्वार्थ, प्रादि से जघन्य शब्द को साध लिया जाय । अथवा देहांग होने से भावार्थ में जघन्य शब्द की सिद्धि कर ली जाय जघन में जो हो रहा है, वह जघन्य है, यानी निकृष्ट है, जघन्य के समान जघन्य है,जघन्य का अथ यों अत्यन्त अपकृष्ट यानी सब से नीचली अवस्था को प्राप्त हुँप्रा कहा जाता है।
गुण शब्द के अप्रधान, लेज, भाग, उपकार, रूपादि, विशेषण, आदि अनेक अर्थ हैं, किन्त प्रकरणवश वक्ताकी विवक्षा की अधीनता से यहां भाग अर्थ ग्रहण किया गया है। जैसे कि इस गोजई में दुगुने जौ हैं,यानी गहू और जौ का मिलो हुई ढेरीमे एक भाग गेंहू हैं,और दो भाग जौ हैं, यों द्विगण यानी दा भाग जो कह जाते हैं, अतः दुगुन जौ से यहा जिस प्रकार दो भाग जो इस अर्थ की प्रतिपत्ति होजाती है, वैस ही जिन परमाणुप्रो के गुण यानो भाग अविभाग प्रतिच्छेद ) निकृष्ट होगये हैं। उन जघन्य गुण वाले परमाणुमा का बध नहीं हाता है, यो अथं जान लिया जाता है। अथवा सूक्ष्म होने के कारण जिन परमाणुओं का गुण जघन्य होगया है, वे परमाणुयें जघन्य गुण हैं, उनका परस्पर वन्ध नहीं होता है, इस प्रकार वाक्याथ ।। दानों प्रौर से सम्पन्ध र लेना चाहिये तिस कारण एक गुण वाले स्निग्ध परमाणु प्रथा रूक्ष परम णु का दूसरे एक गुण वाले स्निग्व परमाणु और रूक्ष पर. माणु के साथ बंध नहीं होगा।
इसी प्रकार स्नेह के वा रूक्ष के एक गुण को यानी जघन्यभाग अविभाग-प्रातच्छेदों को धार रही एक परमाणु का दूसरी दो, तीन, संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त गुणों को धार रही परमाणु के साथ बंध नहीं होसकेगा। तिसी प्रकार दो, तीन, चार प्रादि को वृद्धि अनुसार दो, तीन, आदि गुण वाले परमाणु के साथ एक गुण वाले परमाणुप्रों करके बंध नहीं होगा। अर्थात्-दो दो बढ़ा कर या तीन, तीन, चार, चार, बढ़ा कर गुणों के धारो परमाणुओं का एक गुण वाले कई परमाणु के साथ बन्ध नहीं होपाता है, दो परमाणुओं करके द्वषणुक बनाने के अवसर पर जैसे · न जघन्यगुणानां' लागू होता है, उसी प्रकार सैकड़ों, संख्याते, अनन्ते परमाणुमों का स्कन्ध बनने की योग्यता मिलने पर भी उक्त अपवाद लागू होजाता है, यह सूत्रकार का प्रभित्राय इस सूत्र करके सूचित कर दिया गया समझ लिया जाता है।
____ ननु च जघन्यगुणा परमाणवः केचित्सतीति कुतो निश्चयः स्निग्धरूक्षगुणयोरपकर्षातिशयदर्शनाव परमापकर्षस्य सिद्धजव यगु पासद्धिः । उष्ट्र वीराद्धि महिषीक्षीरस्यापकृष्टः स्नेहगुणः प्रतीयते मना नाचारस्य पावरस्य सविताय यति । तथा गुणोपि