Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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श्लोक- वार्तिक
રૂન્દ
रहे बंध होने का कथन कर दिया जाता है, अतः दो स्निग्ध गुण या दो रूक्ष गुण वाले परमाणु का एक गुण दो गुरण या तीन गुरण के धारी स्निग्ध अथवा रूक्ष परमाणु के साथ बंध नहीं होगा । हाँ चार गुण स्निग्ध वाले या चार गुण रूक्ष वाले अन्य परमाणु के साथ तो उसका बंध अवश्य हो जायेगा किन्तु उसी दो गुण स्निग्ध या दो गुरण रूक्ष के धारी पुद्गल का फिर पांच, छ:, सात, आठ, संख्यात असंख्यात या अनन्त, स्निग्ध रूक्ष गुणों के धारी दूसरे परमाणु के साथ बंध नहीं हो सकता है, इसी प्रकार तीन गुण रूक्ष या स्निग्धके धारी परमाणु का पाँच गुणधारी स्निग्ध या रूक्ष पुद्गल के साथ बंध हो जायेगा किन्तु शेष पहिले पिछले गुणों के धारी परमाणु के साथ बंध नहीं होगा इसी प्रकार शेष परमाणुओंों में भी द्वयधिकता की व्यवस्था जोड़ ली जाय, जघन्य गुणों को छोड़ कर शेष सजातीय, विजातीय, परमाणुओं के स्निग्ध रूक्ष गुणों के अविभाग प्रतिच्छेदों में द्वद्यधिकता का प्रकरण मिल जाने पर बंध हो जाता है ।
--द्वयधिकश्चतुर्गुणः । कथं ? एकगुणस्य केनचिद्वंधप्रतिषेधाद्विगुणस्य बंधसंभवासंतोद्वयधिकस्य चतुर्गुणत्वोपपत्त े: । प्रकारवाचिनादिग्रहणेन पंचगुणादिपरिग्रहः, त्रिगुणादानां बंधे पंचगुणादीनां द्वधिकतोपपत्त ेः । एवं च तुल्यजातीयानां विजातीयानां च द्वयधिकादिगुणानां बंध सिद्धो भवति । तु शब्दस्य प्रतिषेधनिवृत्त्यर्थत्वात् । तथाहि
द्वधिक शब्द का अर्थ चार भाग वाला है, सो किस प्रकार है ? उसको यों समझो कि एक गुण वाले परमाणु का तो किसी के साथ बंध होता ही नहीं है क्योंकि 'न जघन्यगुणानां' से निषेध कर दिया गया है, हां दो गुरण वाले परमाणु का बंध जाना सम्भव से जो इस सूत्र अनुसार दो अधिक गुण वाला अन्य परमाणु होगा जाता है, तीन गुण वाले का पांच गुण वाले के साथ बंध जाने के योग्य द्वयधिकता है ।
होता है, अतः उस दो गुण वाले उसको चार गुण सहितपना बन
आदि शब्द का अर्थ यहाँ प्रभृति कर देने से द्वधिक, त्र्यधिक, चतुरधिक, द्वारा यों सिद्धान्त से विरोध प्रजाता, भले ही 'तद्गुणसं'विज्ञान बहुब्रीहि का श्राश्रय कर दूधधिक का भी संग्रह कर लिया जा सकता था तथापि सिद्धान्त के अविरोध अनुसार आदि शब्द को प्रकार अर्थ का वाचक मान लिया जाय सूत्र में प्रकार प्रथ का कहने वाले आदि शब्द का ग्रहण कर देने से पांच गुरण, छः गुण सात भाग. आठ भाग, आदि के धारी परमाणुत्रों का भी परिग्रह होजाता है, तीन गुण वाले चार
वाले आदि परमाणु का बंध होजाना मान लेने पर पांच गुण, छः गुण, आदि के धारी परमाणुत्रों की धिकता पुष्ट बन जाती है, तथा इसी प्रकार तुल्य-जाति वाले और विभिन्न जाति वाले परमा
नों की यधिक गुणवाली अवस्था होजाने पर उनका बंध जाना सिद्ध होजाता है, इस सूत्र में तु शब्द ' को ' ने जघन्यगुणानां से चले आ रहे निवेश की निवृत्ति के लिये युक्त किया गया है, इसी बात htद्वारा आहे देते हैं।