Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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लोक-बातिक
__ यहां किसी विनीत शिष्य की सूत्रकार महाराज के प्रति जिज्ञासा है, कि क्या कारण है ? जिससे फिर दो ही गुण अधिक बेचारे भला उन सजातीय अथवा विजातीय परमाणुओं का दूसरे परमाणु के साथ बंध होजाने के कारणपने को प्राप्त होरहे हैं, अन्यथा यानी अन्य प्रकार समगुणता, यधिकगुणता, या चार गुणों से अधिक गुण-सहितपना, आदि उस बंध का कारण नहीं माने गये हैं, अतः बतायो कि इन अन्य प्रकारों से क्यों नहीं बंध की हेतुता व्यवस्थित कर दी जाय अर्थात् द्वयधिक गुणों पर क्यों बल डाला जाता है ? सम-गुणों का ही बंध क्यों नहीं हो जाय ?, नीति तो यों कहती है, कि 'ययोरेव समं वित्त ययोरेव समं कुलं । तयोमैत्री विवाहश्च न तु पुष्टविपुष्टयोः' ऐसी बुभुत्सा जागृत होने पर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्र को कहते हैं।
बंधेऽधिको पारिणामिकौ ॥३८॥ बंध होजाने पर अधिक होरहे दो गुण दूसरे परमाणु के द्विहीन गुणों को स्वायत्त कर परिणाम करा देने वाले होजाते हैं। जैसे कि गीला गुड़ चून को या पड़ गई धूल को अपने अधीन मधुर रस वाला करता हुआ स्वकीय गणों का पापादन करने से परिणाम कराने वाला हो जाता है । इसी प्रकार अन्य भी अधिक गुण वाला परमाणु दूसरे द्विभाग न्यून परमाणु को द्वथणुक अवस्था में स्वकीय रूखे या चिकने अविभागप्रतिच्छेदों के अनुरूप कर लेता है, अत बंध में अधिक गुगों को दूसरे के गुणों का पारिणामिकत्व साधने के लिये बंधने का वीज द्वयधिकता को बताया या है।
यस्मादिति शेषः। प्रकृतत्वाद्गुणसंप्रत्ययः । क, प्रकृतौ गुणो द्वयधिकादिगु नां त्वित्यत्र समासे गुणीभूतस्यापि गुणशब्दस्यानुवर्तनमिह सामर्थ्याव, तदन्यस्यानुवर्तनासंभवात् । गुणावितिवाभिसंबंधोर्थवशाद्विभक्तिवचनयोः पारणामात् भावांतरापादको पारिणामिकौ, रेणो क्लिन्नगुणवत् । तथाहि ।
इस सूत्र में 'यस्मात्, इस पद को शेष समझ कर उपस्कार करते हुये यों अर्थ समझ लिया जाय कि जिस कारण से बंध होजाने पर एक के दो अधिक गुण दूसरे के दो न्यून गुणों का स्वानुकुल परिणमन करा देते हैं, तिस कारण दो अधिक गुण वालों का बंध होजाना समुचित है, यों उक्त दोनों सूत्रों का प्रतिज्ञावाक्य बन गया। प्रकरण में प्राप्त हो रहा होने से गुण की भले ही प्रकार प्रतीति होजाती है, यानी " बंधे सति अधिको गुणौ पारिणामिको भवतः " यह वाक्य बनजाता है।
यदि कोई पूछे कि द्विवचनान्त 'गुणो' यह पद भला प्रकरणप्राप्त कहां होरहा है ? बताओ इसका उत्तर यह है, कि 'द्वघधिकादिगुणानां तु यों इस सूत्र में यद्यपि गुग्ण शब्द बेचारा बहुव्रीहि समास में गौण होचुका है, 'एकयोगनिर्दिष्टानां सह वा निवृत्तिः सह वा प्रवृत्तिः' इस नियम अनुसार केवल गुख शब्द का निकाल लेना उसी प्रकार कठिन है, जैसे कि किसी अंगी में से एक अङ्ग को निकाल लेना या रसीले पदार्थ से रस का निकाल लेना दुष्कर है, तथापि समास-बृत्ति में उपसर्जनी