Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पंचम - अध्याय
३.१.३
भी पुद्गल - स्कन्धों की पर्यायपना साधा जा चुका समझ लो । बात यह है, कि "परं परं सूक्ष्मम्" इस सूक्ष्मता के प्रतिपादन अनुसार सूक्ष्म जीवों का श्रदारिक शरीर या देवों के विक्रिया द्वारा बना लिये कतिपय वै क्रियिक शरीर अथवा षष्ठ गुणस्थानवर्ती किसी मुनि के हुआ प्रहारक शरीर आदि में भवान्तर सूक्ष्मता पाई जा रही पुद्गल स्कन्धों की पर्याय कही जा सकती है।
देव चाहें तो अपने शरीरको मनुष्य या तियंचों करके देखने योग्य या नहीं भी देखने योग्य बना सकते हैं । धौले, हस्त प्रमाण और सम्पूर्ण रंग उपांग वाले श्राहारक शरीर का भी वहिरंग इन्द्रियों से प्रत्यक्ष नहीं होता है, कतिपय वादर औदारिक शरीर और कुछ वैऋियिक शरीरों का स्पशंन आदि इन्द्रियों द्वारा ग्रहरण होजाता है. अकर्मण्य किन्तु लोक दक्ष प्रभु के समान इन्द्रियां भी अत्यल्प कार्यों को कर बहुतसा यश लूटना चाहती हैं. किन्तु अनन्तमे भाग पदार्थों के भी स्पर्श, रसादि का इन्द्रियों से ज्ञान नहीं होपाता है, तभी तो तत्वज्ञानी पुरुष इन्द्रिय सम्बन्धी विषयों में अपेक्षा को धारते हुये उस प्रतीन्द्रिय श्रात्मीय सुख में लवलीन होजाना अच्छा समझते हैं । तथा एक अनुमान यो भी बना लिया जाय कि हम तुम, आदि जीवोंकी वहिरंग इन्द्रियों द्वारा ग्रहण करने योग्य स्थूलता श्राकृति आदि धर्म ( पक्ष ) पुद्गल स्कन्धों के पर्याय हैं, ( साध्य ) स्थूलता आदि होने से ( हेतु ) हम तुम, आदि के ग्रहण करने योग्य घट, पट आदि सम्बन्धी स्थूलता, सस्थान, आदि के समान ( अन्वय दृष्टान्त ) । इस अनुमान में सामान्य को पक्ष बना कर विशेष को हेतु कह देने से कोई प्रतिज्ञार्थंकदेश सिद्धि दोष नहीं आता है, प्रसिद्ध दृष्टान्त से अप्रसिद्ध पक्ष में साध्य को साथ दिया जाता है ।
बात यह है, कि इस युग में पुद्गल का चमत्कार बड़ा भारी देखा जा रहा हैं, यूरोप, अमेरिका के विद्वान् विज्ञान प्रक्रियानों द्वारा बड़े बड़े पुतलीघर, वेतार का तार फोनोग्राफ, लाउड स्पीकर ऐक्सरे, हजारों कोस दूर के गाने सुनने वाले या दूरके फोटो उतारने वाले यंत्र, वायुयान. थर्मामीटर, भूकम्प ज्ञापक यंत्र, सूर्य शक्ति प्राकर्षक यंत्र, विष वायु (गैस) उग्रविस्फोटक, ग्रहगतियों के घटीयंत्र, विद्यत् चिकित्सा श्रादि प्रयोगों करके पुद्गल का चमत्कार दिखला रहे हैं, जो कि सिद्धान्त के सर्वथा अनुकूल पड़ता है । इस प्रकरण में पुद्गल के परिणाम होरहे शब्द का ग्रन्थकार ने व्याख्यान कर दिया है, दार्शनिक प्रक्रिया से बध का भी थोड़ा विवेचन किया है. इसी प्रकार शास्त्रीय या लौकिक पद्धतियों से अन्धकार छाया भेद, प्राकृति आदि का भी विशद विवरण होसकता है, बुद्धिमानों को पृथक् प्रदर्शन कराने के लिये संकेत मात्र पर्याप्त है। रंध रहे भात का एक दो चावल देखा जाता है, सभी नहीं । कोई शिष्य पूछता है कि स्पर्श आदि परिणाम वाले कौनसे पुद्गल हैं ? तथा स्पर्श श्रादि और शब्द श्रादि दोनों परिणामों वाले भला कौनसे पुद्गल हैं ? बताओ, ऐसी जिज्ञासा प्रवर्तने पर श्री उमास्वामी महाराज पुद्गलों के प्रकारों का निरूपण करने के लिये अगले सूत्र को कहते हैं ।
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