Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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लोक-वातिक
विदारण होजाने से परमाणुयें उपजते हैं । स्कन्ध भेद से उपज चुके परमाणु का भी एक देश, भूमि प्रदेश, आदि के साथ हुआ विभाग तो विभागज विभाग नहीं है किन्तु स्कन्धं का भेद ही है इन सभी व्यवस्थाओं को हम समान रूप से देख रहे हैं ।
यानी वैशेषिक जो प्राक्षेप करते हैं, उसी प्रकार उनके ऊपर दूसरे विद्वानों द्वारा भी प्राक्ष ेप किया जा सकता है, तथा वैशेषिक जो अवयवी की उत्पत्ति होजाने में समाधान करते हैं. वही परमात्रों की उत्पत्ति में भी समाधान होजाता है, यहां रूक्ष पक्षपात के सिवाय कोई अन्य गम्भीर प्रमेय का अन्तर नहीं है, जिससे कि वे स्कन्ध की उत्पत्ति तो मान लेवें और परमाणु की उत्पत्ति में रोड़ा अटका देवें । अतः सिद्ध है, कि स्कन्ध के भेद से परमाणु की उत्पत्ति होजाती है, द्वणुक स्कन्ध से एक परमाणु का एक देश के साथ विभाग होकर परमाणु उपजता है और व्यरणुक अवयवी से द्वणुक को अलग कर एक परमाणु का दो देश से विभाग होजाने पर परमाणु उपजता है. एवं चतुरशुक का विदारण होजाने से एक साथ चारों अणुयें भी उपज सकती हैं, और कदाचित् एक परमाणु का तीन प्रदेश वाले त्र्यणुक से विभाग होकर एक अणु उपजता है, एक देश आदि यहां पड़े हुये प्रादिशब्द का यही तात्पर्य जंचता है |
यदि पुनरवयवानां संयोगादवयविनः प्रादुर्भावस्तद्भावे भावात्तदभावे चाभावाद् विभाव्यते तदा तत एव परमाणुनां स्कंधभेदात्प्रादुर्भावोस्तु |
यदि फिर वैशेषिक यों कहें कि अवयवों के संयोग से अवयवी की उत्पत्ति होरही बालक, बालिकाओं तक को दृष्टिगोचर है, क्योंकि अवयवी और अवयवों के कार्य कारण भाव में अन्वय और व्यतिरेक घटित हो रहा है, अवयवों के उस सयोग के होने पर अवयवी का भाव ( उत्पत्ति ) है, और उस अवयवों के संयोग का अभाव होने पर अवयवी का उत्पाद नहीं होंपाता है, अतः अवयवी और अवयवों का उत्पाद्य, उत्पादक भाव विचार लिया जाता है । तब तो हम जैन भी कहेंगे कि तिस ही कारण से यानी कार्यकारण भाव के परिनिष्ठापक माने गये अन्वय व्यतिरेकों अनुसार परमाणुत्रों की भी स्कन्ध के विदारण से उत्पत्ति होजाम्रो अर्थात् स्कन्ध का विदारण होने पर प्रणुयें उपजती हैं, यों यहां अन्वय घट गया और स्कन्ध का विदारण नहीं होने पर अणु नहीं उपजतीं हैं, यह व्यतिरेक घटित होगया । श्रतीन्द्रिय पुण्य पाप या ईश्वर के साथ भी कार्यों का अन्वय व्यतिरेक बनाने में जो आपका शरण्य है, उसी प्रमारण की शरण इस अवसर पर भी ले लोजियेगा, जब कि बड़े स्कन्थों का भेद होकर छोटे छोटे अवयव उपज जाते हैं, तो यों उत्तरोत्तर धारा चलते हुये यह छोटे अवयवों का अन्तिम विश्राम लेने का स्थल परमाणु हो होगा। न्यायप्राप्त हो रहे समीचीन सिद्धान्त का विचारशाली विद्वानों करके स्वीकार कर लेना ही प्रशस्त मार्ग है ।
नित्यत्वात् तेषां न प्रादुर्भाव इति चेन्न, तन्नित्यत्वस्य सर्वथा अनवसायात् । नित्याः परमाणवः संदकारणवत्वादाकाशादिव दत्यपि न सम्यक् तेषामकारणवश्वासिद्धेः । पुद्गलद्र