Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पंचम - अध्याय
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अर्थात-मेद यानी विदारण से ही अणु उपजता है, यह पूर्व अवधारण करना अच्छा है । रूई की पंचमनी गांठ से जो छोटी इकमनी दुमनी, गांठें तोड़ फोड़ कर बना ली जाती हैं वे अवयव तो भेद से ही उपजे हुये माने जायंगे वंशेषिकों की उत्पादविनाश-प्रक्रिया केवल फटाटोप दिखाना है उसमें रहस्य कुछ भी नहीं है, कपड़े को फाड़देने पर अव्यवहित उत्तर समय में झट खण्ड पट उपज जाता है । वहां श्रवबों का भेद होते होते षडणूक, पंचारणूक, चतुररणूक, व्यणूक, द्वणुक, परमाणुयें होकर पुन: परमाणुत्रों में क्रिया द्वारा द्वणुक, व्रणुक, आदि उपजकर खण्ड पट बना है, ऐसी शेख - चिल्ली की सी कल्पनात्रों में कोई प्रमाण नहीं है ।
तथाहि - द्वयोः परमाण्वीः संघातादुतद्यमानो द्विप्रदेशः स्कन्धः कश्चिदाकाशप्रदेशद्वय वगाही कश्चित् परमाणुपरिमाण एव स्यात् । द्वाभ्यां च स्वकारणादधिक परिमाणाभ्यामुत्पद्यमानः कश्चिदाकाश-प्रदेशचतुष्टयावगाही महान् । कश्चित्पुनरेकाकाशप्रदेशावगाही ततोणुरेवावगाह विशेषस्य नियमाभावात् ।
'भेदसंघातेभ्य उत्पद्यते, भेदादणुः " इन दो सूत्रों करके उमास्वामी महामना ने जो कहा है उसको पुनः स्पष्टयों समझ लीजियेगा कि दो परमाणुओं के एकीभाव से उपज रहा दो प्रदेशों वाला द्वणुक स्कन्ध कोई तो आकाश के दोनों प्रदेशों को घेर कर श्रवगाह कर रहा है और कोई दो परमाणुओं के मेल से बना द्वणुक एक परमाणु के बराबर परिमाण का धारी होकर आकाशके एक प्रदेश में ही ठहर रहा है यहां तक कि अनन्त परमाणुओं का समुदाय या वद्ध पिण्ड भी एक परमाणु बराबर होकर आकाश के एक प्रदेश में समा जाता है, हां एक परमाणु दो प्रदेशों पर नहीं ठहर सकती है ।
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तथा अपने कारण होरहे परमाणूत्रों के प्रत्येक के परिमाण से अधिक परिमाण वाले दो द्वगुकों से उपज रहा कोई कोई चतुरतूक तो प्राकाश के चारों ही प्रदेशों पर अवगाह करता सन्ता महान् है और कोई चतुरणूक फिर प्राकाश के एक प्रदेश में ही अवकाश कर लेता है कभी कभी ऐसा होजाता है कि दो दो प्रदेशों पर बैठे हुये दो द्वचणुको से एक चतुरगुरु महान् स्कन्ध उपज गया वह केवल आकाश के एक प्रदेश पर हो श्रवस्थान कर लेता है । अतः अपने यानो चतुररणुक के परिमाण से उसके कारण घणूक का परिमाण अधिक यों भी कहा जा सकता है। संयुक्त या बद्ध ग्रनन्तानन्त परमाणु भो एक, दो, तीन, संख्यात प्रसंख्यात देशां पर ठहर जाती हैं यह बात अवश्य है कि तीन परमाणु यदि दा प्रदेशों पर ठहरें या ना परमानं चार प्रदेशां पर ठहरेंगी तो डेड़ डेड़ परमाणु एक एक प्रदेश पर या सत्रा दो, सवा दो परमाणुत्रों का एक एक प्रदेश पर ठहरने का ठीक बांट नहीं कर देना चाहिये अखण्ड परमाणूयें पूरे एक प्रदेश को घेरेंगी नो परमाण्यें यदि प्रबद्ध होकर दो प्रदेशों पर ठहरेंगी तो एक प्रदेश पर एक और दूसरे प्रदेश पर शेष आठों ही या एक प्रदेश पर दो और दूसरे प्रदेश पर शेष सातों अथवा एक प्रदेश पर तीन और दूसरे प्रदेश पर शेष छऊ एवं एक प्रदेश पर चार