Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
View full book text
________________
पंचम-अध्याय
३४१
दियों के यहां नहीं माना गया है । अर्थात्-संघात से अचाक्षुष पदार्थ का चाक्षुष अर्थ उपज जाय, इसमें आश्चर्य नहीं है, किन्तु भेद और संघात दोनों से भी अचाक्षुष प्रथ चाक्षुष अर्थ होजाता है । हां राजवात्तिक में केवल भेद से चाक्षुष होना नहीं इष्ट किया है। इस कारिकामें "भेदसंघातद्वयात्" ऐसा पद नहीं कहा है, किन्तु "भेदात् संघातात्, द्वयात्,, इस प्रकार तीनपद न्यारे न्यारे कहे हैं, इससे यह भी श्री विद्यानन्द प्राचार्य महाराज का अभिप्राय ध्वनित होता है, कि तीनों स्वतंत्र कारणों से अचानुष का चाक्षुष अर्थ बन जाता है, विज्ञान ( साईस ) का सिद्धान्त है, कि किन्हीं किन्हीं दो गैसों के मिल जाने से बन गये पदार्थ का चाक्षुषप्रत्यक्ष नहीं होता है, हां उन मिली हुई गैसों का विदारण कर देने से उपजे पदार्थ का चक्षु से प्रत्यक्ष होजाता है । मोती या हीरा का विदारण कर देने से उसके भीतर का समल या निर्मल, अवयवी, टुकड़, दृष्टिगोचर होजाता है. कई अवयवियों के पिण्ड में मिल जुल रहे छोटे अवयवी का चाक्षुष प्रत्यक्ष नहीं होता था किन्तु उस पिण्ड का भेदन कर देने से वह अव्यक्त अवयवी व्यक्त दीख जाता है।
मूग. गेंहू उड़दों, में अन्य तुच्छ धान्य या कंकरियां मिल जाती हैं, या पुरानी मूग आदि मिला दिये जाते हैं, चतुर ग्राहक ढेर में से थोड़े मुट्ठी भर धान्य को पृथक् कर गुप्त होरहे कूड़े , करकट को व्यक्त देख लेता है, सोने को घिस कर उसके अन्तरंग रूप को जांच लेते हैं, हल्दी, कत्था, सुपारी, बादाम को छिन्न. भिन्न, कर देख लिया जाता है । बात यह है, कि अप्रतिष्ठित प्रत्येक भी होरहे आम्रवृक्ष, केला आदि में यद्यपि पूरा एक एक जीव है, तथापि उनके छोटे छोटे टुकड़ों में भी वनस्पति कायिक जीव विद्यमान हैं, मचित्त का त्यागी आम्रवृक्ष से तोड़ लिये गये फल को नहीं खा सकता है, हां "सुवकं पक्क नत्त" इत्यादि प्रागमोक्त प्रक्रिया से अचित्त होजाने पर प्रचित्त प्रामको खा लेता है, सिलोटिया और लुढ़िया से कच्चे आम की चटनो रगड़ने पर भी यदि बड़े बड़े अवयव रह जायंगे तो वे सचित्त ही समझे जायंगे, हां अधिक बट ( पिस ) जाने पर प्रचित्त होसकते हैं ।।
त्याग की मीमांसा यह है, कि भले ही इन्द्रियसंयम को पालने वाला व्रती सूखे, पके, तपाये गये या तीक्ष्ण रस वाले पादार्थ से मिलाये गये और यंत्र द्वारा छिन्न किये गये प्रचित्त पदार्थ को नहीं खाय किन्तु इनको अचित्त हो माना जायेगा। इस प्रकार एक अवयवी में अनेक अवयवियों या प्रवयवों का सम्मिश्रण है, लड्डू में बादाम, पिस्ता, इलायची, काली मिर्च, सोना चांदी के वर्क, सालम मिश्री आदि द्रव्य डाल कर मिला दिये जाते हैं,सुन्दर वस्त्र में गोटा, सलमा, मोती, लगा दिये जाते हैं, कोरे कागजों पर स्याही लगा कर अक्षर लिखदिये जाते हैं. गृह में ईट चूना लकडी, सोटें, किवाड़, सींकचा लगाये जाते हैं, इस प्रकार के संयुक्त एक एक अवयवी का विदारण होजाने से उनके अव्यक्त छोटे अवयवियों का चाक्षुष प्रत्यक्ष होजाना प्रसिद्ध है, खांड के डेल, गुड़, आदि बद्ध अवयवी में क्वचित यही व्यवस्था देखी जाती है, तथा संघात और भेद संघात दोंनों से चाक्षुष अवयवी का उपज जाना कह दिया गया है, अतः संघात से हो चाक्षुष हाने का अवधारण करना चाहिये ।