Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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श्लोक-वार्तिक
___ ग्रन्थकार कहते हैं, कि यह तो नहीं कहना क्योंकि इस तुम्हारे मनमाने सिद्धांत का पोषक कोई बलवत्तरप्रमाण नहीं है, छोटों से जैसे बड़े उपजते है, उसी प्रकार बडों से भी छोटे उपज जाते हैं, कीच से कमल उपज जाता है, साथ ही कमल का भी सड़, गल, कर कूड़ा बन जाता है, बड़े बड़े कुलीन पुरुषों के यहां तुच्छ प्रकृति के मनुष्य जन्म ले लेते हैं, कई राजा, महराजों, या वादशाहों के सन्तान, प्रतिसन्तानमें झाड़ बुहारना, पल्लेदारी करना,पंखा हाँकना, आदि नीच कर्मकरके आजीविका चलाने वाले उपज जाते हैं, संसार की गति बड़ी विचित्र है। बड़े माता पिताओं से छोटे बच्चे उपजते हैं, बड़े गेंहू से फ्सि कर चून के कण बन जाते हैं, मीठे खण्डों से कुटकर बूरा बनता है, पहाडों को काट कूट कर पटियां, चाकी, मूर्तियां, गट्टियां, आदि टुकडे, कर लिये जाते है, इसी प्रकार बड़े स्कन्धों से भी छोटे अणू उपज जाते हैं, इस सिद्धान्त में प्रमाणों का सद्भाव है।
विवादाध्यासितः स्कंधो जायते सूक्ष्मतोन्यतः । स्कंधत्वात्पटवत्प्रोक्तं यैरेवं ते वदत्विदम् ॥ ४ ॥ विवादगोचराः सूक्ष्मा जायंते स्कंधभेदतः
सूक्ष्मत्वाद् दृष्टवस्त्रादिखंडवभ्रान्त्यभावतः ॥५॥ वैशेषिकों का अनुमान है, कि प्रतिवादो के यहां विवाद में प्राप्त होरहा स्कन्ध ( पक्ष ) किसी अन्य सूक्ष्म परिणाम वाले कारणों से उपजता है, ( साध्य ) स्कन्ध होने से ( हेतु ) पट के समान ( अन्वयदृष्टान्त )। प्राचार्य कहते हैं, कि इस प्रकार जिन वैशेषिकों ने इतना बहुत अच्छा कहा है। साथ ही वे यह और भी कहें कि वैशेषिक या नैयायिकों के यहां यों विवाद में पड़े हुये कि सूक्ष्म अवयव उपजते भी हैं, या नहीं उपजते हैं ? सम्भव है, सूक्ष्म पदार्थ नहीं उपजते होंयगे, अथवा उपजते ही होंयगे तो अपने से छोटे परिमाणवाले कारणों से ही उपज सकते हैं, ऐसे विवाद विषय होरहे सूक्ष्म अवयव ( पक्ष ) स्कन्ध के विदारण से उपजते हैं, ( साध्य ) सूक्ष्म होने से ( हेतु ) देखे जा चुके या फाड़े जा चुके वस्त्र, पत्ता, आदि के खण्ड समान ( अन्वयदृष्टान्त ) । यह अनुमान निर्दोष है, स्कन्धों से परमाणूओं की उत्पत्तिका ज्ञान करने में भ्रम ज्ञान होजाने का प्रभाव है, अभ्रान्त या असम्भवद्वाधक प्रमाणों से वस्तु की सिद्धि होजाती है ।
घनकापासपिण्डेन सूक्ष्मेण व्यभिचारिता। हेतोरिति न वक्तव्यमन्यस्यापि समत्वतः॥६॥ श्लियावयवकसिपिंडसंघाततो यथा। घनाक्यासपिंडः समुपजायते ॥७॥