Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पंचम-अध्याय
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उक्त वर्तनाका वार्तिकों द्वारा ग्रन्थकार करके यों विवरण किया जा रेहो है कि द्रव्यके प्रत्येक पर्याय के प्रति जो एक समय का अन्तरंग में प्राप्त करता हुआ भेदविवक्षा अनुसार स्वकीय सत्ता का अनुभव है, वह यहां प्रकरणमें वर्तना वखानी जाती है, जिस कारण से कि वर्तना शब्द की व्याकरण द्वारा सिद्धि यों की जाती है कि रिण प्रत्ययान्त वत्ति धातु से कर्म या भाव में युच प्रत्यय करने पर स्त्रीलिंग की विवक्षा होतेसन्ते “ वर्तना" यह शब्द निष्पन्न होजाता है अथवा अनुदात्त इव होने से ताच्छील्य, अधिकरण, प्रादि अर्थमें युच प्रत्यय करने पर वर्तना शब्द बन गया इष्ट कर लिया जाता है
धर्मादीनां हि वस्तूनामेकस्मिन्नविभागिनि । समये वर्तमानानां स्वपर्यायैः कथंचन ॥३॥ उत्पादव्ययध्रौव्यविकल्पैर्बहुधा स्वयं । प्रयुज्यमानतान्येन वर्तना कर्म भाव्यते ॥४॥ प्रयोजनं तु भावः स्यात्स चासौ तत्पयोजकः।
काल इत्येष निर्णीतो वर्तनालक्षणोंजसा ॥ ५॥ बहुत प्रकार उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यों के विकल्प स्वरूप अपनी पर्यायों करके एक अविभागी समय में किन्हीं न किन्हीं कारणों अनुसार स्वयं वर्तन कर रहे धर्म आदिक छहों वस्तुओं की जो अन्य किसी प्रयोजक कारण करके प्रयुज्यमानपना है। वह वर्तना नाम की क्रिया विचारली जाती है। भावार्थ-धर्मादिक छहों द्रव्ये अपने अन्तरंग, वहिरंग कारणों अनुसार प्रत्येक समय में अपनी अपनी अनेक उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यों, के विकल्प स्वरूप पर्यायों करके अनेक ढंगों से स्वयं वर्त रही हैं। तथापि किसी अन्य प्रयोजक कर्ता करके इन धर्मादिकों में प्रेरितपना विचार लिया जाता है। बस वही वर्तना इस प्रयोजक कर्ता काल के द्वारा किया गया उपकार है। प्रयोजक काल का भाव तो धर्मादिकों का वर्ता देना प्रयोजन है, और वह जो उनका प्रयोजक यह काल है। इस प्रकार यह निर्दोष रूप से वर्तना नामक लक्षण को धार रहा काल द्रव्य निर्णीत होजाता है। नवगणी या दशगणी का कर्ता प्रयुज्य होजाता है, और ण्यन्त का कर्ता प्रयोजक होजाता है। प्रयोजक का प्रयो न पहां वर्तना नामक परिणति है, जोकि युक्तियों से शीघ्र समझली जाती है।
प्रत्यक्षतोअसिद्धापि वर्तनास्मादृशां तथा । व्यावहारिककार्यस्य दर्शनादनुमीयते ॥ ६॥ यथा तंदुलविक्लेदलक्षणस्य प्रसिद्धितः। पाकस्यौदनपर्यायनामभाजः प्रतिक्षणं ॥७॥ सूक्ष्मतंदुलपाकोस्तीत्यनुमानं प्रवर्तते। पाकस्यैवान्यथेष्टस्य सर्वथानुपपचितः ॥८॥