Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पंचम-अध्याय
पदार्थका निषेध करते हो ? अथवा नहीं-निषिद्ध पदार्थ का निषेध करते हो ? अथवा क्या निषिद्ध पौर अनिषिद्ध उन दोनों स्वभावो से रहित होरहे ही पदार्थका निषेध करते हो ? तीनों पक्षोंमें इस प्रकारका निषेष नहीं बन सकता है, विधि ही बन बैठेगी. निषेध कहां रहा ? अर्थात्-निषिद्ध का निषेध करने पर सहाव उपस्थित होजाता है और अनिषिद्ध का निषेध करते हुये वदतोव्याघात दोष है फिर भी विधि ही पाई तथा जो निषिद्ध भी नहीं और अनिषिद्ध भी नहीं उसका परिशेष में जाकर विधान होजाता है, निषिद्ध नहीं, अनिषिद्ध भी नहीं यों दोनों में से किसी भी एक का निषेध करते ही झट दूसरे का विधान होजाता है, यों व्याधात हुआ जाता है अथवा सत् का निषेध भी नहीं होसकता है, विरोध है, खरविषाणके समान । असत् पदार्थका भी विषेध नहीं होसकता है, अतः वर्तमान कालका भी निषेध अशक्य होगया। बात यह है कि कुचोद्यों द्वारा किसी भी सदूभूत पदार्थ का निषेध या असद्भूत पदार्थ का विधान करना अन्याय है।
क वाभ्युपगमः सिद्धयत् प्रतिज्ञाहानिसंगतः। तस्य स्वयं प्रतिज्ञानाद्वर्तमानस्य तत्वतः ॥२१॥ तथैव च स्वयं किंचित्परैरभ्युपगम्यते। तथैव गम्यते किं न क्रियते वेद्यतेपि च ॥२२॥ संवेदनाद्वयं तावद्विदितं नैव वेद्यते । न चाविदितमात्मादितत्वं वा नापि तवयं ॥२३॥ इति स्वसंविदादीनामभावः केन वार्यते ।
वर्तमानस्य कालस्यापन्हवे स्वात्मविद्विषों ॥२४॥ इस प्रकार कुतर्क करने वाले बौद्धों के यहाँ भला किस निर्णीत पदार्थ में स्वीकृति कर लेना सिद्ध होसकेगा क्योंकि प्रतिज्ञाहानि दोषका प्रसंग पाता है जब कि वास्तविक रूप से उस वर्तमान काल की उन्हों ने स्वयं प्रतिज्ञा करली है तिस ही प्रकार दूसरों करके जो कुछ स्वीकार किया जाता है उसको बौद्ध जब स्वयं स्वीकार कर लेते हैं और उस ही प्रकार प्राप्त कर लेते हैं तो फिर भर किया जायगा ? और क्यों नहीं जाना जायगा।
अर्थात्- स्वीकार कर लेना. प्राप्त कर लेना विधान कर लेना, जान लेना ये सब वर्तमान काल के स्वीकार कर लेने पर ही बन सकते है । केवल सम्वेदनाद्वत बादियों का शुद्ध सम्वेदनाद्वैत तो नहीं जानाजाता है जो प्रश उसका पूर्व में जाना जा चुका है वह वर्तमान में नहीं जाना जा सकता है और नहीं जाने जा चुके आत्मा आदिक तत्व तो कथपपि नहीं वेदे जाते हैं तथा उन विदित और अविदित का द्वय अथवा ज्ञान और प्रात्मा का द्वय तो अद्वैतवादियों के यहां नहीं जाना जाता है. इस प्रकार वर्तमान काल का अपन्हव ( छिपजाना ) मानने पर अपने निज मात्मा के साथ विद्वेष करनेवाले बौद्धों के यहां स्वसम्बेदन मादिकों का प्रभाव किस के द्वारा रोका जा सकता है ? अर्थात्-वर्तमान काल को