Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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पंचम-प्रव्याय
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जो अंशों से रहित है, वह परमाणु के समान सम्पूर्ण स्थानों में कैसे फैल सकता है ? अथवा जो व्यापक होरहा है वह निरंश कैसे होसकता है ? यह तुल्य-बल विरोध है । पुनरपि वैशेषिक अपने पक्ष का अवधारण करते हैं, कि बादी. प्रतिवादी, होरहे वैशेषिक और जैन दोनों के यहाँ आकाश में व्यापकपन का सद्भाव प्रमाणों से सिद्ध है, अतः निरंशपन और विभुपन का कोई तुल्यबल वाला विरोध नहीं प्राप्त हुअा, तिस ही करण से यानी विभुपन से ही आकाश के निरंशपन की सिद्धि होजाती है, उसको स्पष्ट रूप से यों समझिये कि प्राकाश, काल, अादि पदार्थ ( पक्ष ) अंशों से रहित हैं ( साध्य ) सम्पूर्ण जगत् में व्यापनेवाले होने से ( हेतु ) जो पदार्थ अंशों से रहित नहीं है, वह तिस प्रकार सम्पूर्ण जगत् में व्याप रहा नहीं देखा गया है, जैसे कि घट, पट, आदि हैं (व्यतिरेक दृष्टान्त ) । सम्पूर्ण जगत् में व्यापनेवाले आकाश आदि हैं ( उपनय ) तिस कारण से आकाश आदि निरंश हैं ( निगमन)। इस प्रकार यहाँ तक कोई वैशेषिक कह रहा है।
प्राचार्य कहते हैं कि वैशेषिक का वह कथन समीचीन नहीं है, क्योंकि पक्ष के एक देश में हेतु नहीं व्यापता है निरंश परमाणु में उस हेतु का अभाव है, अतः सर्व जगत् व्यापकपना हेतु भागासिद्ध हेत्वाभास है । “पक्षकदेशेहेत्वभावो भागासिद्धिः" यह भागासिद्धि का लक्षण है।
तस्या विवादगोचरत्वादपक्षीकरणाददोष इति चेन्न, सांशपरमाणुवादिनस्तत्रापि विप्रतिपत्तेः पक्षीकरणोपपत्तेः । साधनांतरात्तत्र निरंशत्वसिद्धरिहापक्षीकरणमिति चेत, एवं तर्हि न कश्चित्पक्षाव्यापको हेतुः स्यात् । चेतनास्तरव: स्वापात् मनुष्यवदित्यत्रापि तथा परिह रस्य संभवात् । शक्य हि वक्त रंषु तरुषु न म्वा पादयोऽसिद्धास्त एव पक्षीक्रियते, नेतरे तत्र हे वंतराचेतनत्वप्रसाधनात् ततो न पक्षाव्यापको हेतुरिति ।
वैशेषिक कहते हैं कि वह परमाणु तो वैशेषिक, नैयायिक, जैन, मीमांसक, किसी के यहाँ भी विवाद का विषय नहीं है, सभी विद्वान् परमाणु को निरंश मानते हैं, अतः परमाणु को पक्ष कोटि में नहीं किया गया है. तब तो भागासिद्ध दोष नहीं पाया। प्राचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना क्योंकि परमाणुओं को अशों से सहित कहने वाले वादी पण्डित का उस परमाणु में भी निरंशपन का विवाद खड़ा हया है। प्रथम जैन विद्वान् ही पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, ऊर्ध्व, अधः, यों छहों ओर से अन्य छह परमाणुगों को चिपटाने वाले छह पहलों करके सहित होरहे परमाणु को शक्ति की अपेक्षा षडंश मान लेते हैं, अतः विवाद पड़जाने से परमाणु का भी पक्षकोटि में कर लेना बन जाता है, उस में हेतु के नहीं वर्तने से वैशेषिकों के ऊपर भागासिद्ध दोष खड़ा हया है।
यदि वैशेषिक यों कहैं कि उस परमाणु में अन्य चरमावयवत्व आदि हेतु से निरंशपन की सिद्धि करली जायगी, अतः यहां इस अनुमान में परमाणु का पक्षकोटि में ग्रहण करना उचित नहीं जंचा है । आचार्य कहते हैं कि यों कहोगे तब तो इस प्रकार कोई भी हेतु पक्ष में प्रव्यापक ( भागासिद्ध ) नहीं होसकेगा। देखिये भागासिद्ध का प्रसिद्ध उदाहरण यह है कि वृक्ष ( पक्ष ) चेतन हैं ( साध्य ) स्वाप यानी शयन करना पाया जाने से ( हेतु ) सो रहे मनुष्यों के समान (अन्वयदृष्टान्त ) यों सोते हुये वृक्षों में तो स्वाप हेतु है नौर निद्रा कर्म की उदय उदीरणा से रहित होरहे, जागते वृक्षों