Book Title: Tattvarthshlokavartikalankar Part 6
Author(s): Vidyanandacharya, Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Vardhaman Parshwanath Shastri
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श्लोक-वातिक
के साथ कथंचित् तदात्मक सामान्य की प्रतिपत्ति कराते हुये ग्रन्थाकार ने सामान्य और विशेष दो कार्यों को दिखला कर सूत्रकार के उपग्रह शब्द को सार्थक सिद्ध कर दिया है।
यहां इतना विवेक रखना चाहिये कि यद्यपि धर्म और अधर्मके उपकार गति और स्थिति स्वरूप अनुग्रह हैं फिर भी वे दोनों गति स्थितियां उन धर्म और अधर्म द्रव्य करके स्वतंत्रतया सम्पादित नहीं की जाती हैं, कारण कि धर्म और अधर्म नियम से जीव और पुद्गलों की गति और स्थिति को नहीं बनादेते हैं, यानी प्रेरक कारण नहीं हैं तो फिर धर्म अधर्म ये गति स्थिति में क्या करते हैं ? इसका उत्तर यही है कि धर्म और अधर्म उन गति और स्थितियोंका अनग्रह ही करते हैं, चलाकर बनाते नहीं हैं । गति और स्थिति के सम्पादक कारण जीव और पुद्गल ही हैं धर्म और अधर्म तो उन बन रही गति स्थितियों पर केवल अनुग्रह कर देते हैं जैसे कि मछली के गमन में जल और पथिकों के ठहराने में छाया अनुग्राहक मात्र है, कारक नहीं। यह बात उपग्रह शब्दके डालने पर ही व्यवस्थित होसकती है, अनुग्राहक और प्रेरक कारण में महान् अन्तर है।
___ कुत इत्येवं । ग्रन्थकार के प्रति किमी का प्रश्न है कि इस प्रकार धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य के सामान्य कार्य और विशेष कार्य दो हैं, यह किस प्रमाण से समझा जाय ? ऐसी जिज्ञासा होने पर ग्रन्थकार उत्तर-वार्तिकों को कहते हैं।
सकृत्सर्वपदार्थानां गच्छतां गत्युपग्रहः । धर्मस्य चोपकारः स्यात्तिष्ठतां स्थित्युपग्रहः ॥ १॥ तथैव स्यादधर्मस्यानुमेयाविति तो ततः।
तादृक्कार्यविशेषस्य कारणाव्यभिचारतः ॥२॥ युगपत् गमन करने वाले सम्पूर्ण पदार्थों की गति करने में अनुग्रह करना तो धर्म द्रव्य का उपकार है और तिस ही प्रकार ठहर रहे सम्पूर्ण पदार्थों की प्रक्रम से होरही स्थिति में अधर्म द्रव्यका उपकार समझा जायगा, इस कारण वे धर्म द्रव्य और अधर्म द्रव्य दोनों उन गत्युपग्रह तथा स्थित्युपग्रह कार्यों करके अनुमान करने योग्य हैं, जैसेकि धूमसे अग्नि का अनुमान कर लियाजाता है तिस प्रकार के कार्य विशेष का स्वकीय कारणों के साथ कोई व्यभिचार नहीं है । अर्थात्-गमन करने वाले सम्पूर्ण पदार्थों का युगपत् गमन और ठहरने वाले अखिल पदार्थों का युगपत् ठहरे रहना इन दोनों कार्यों के अव्यभिचरित कारण नियत हो रहे धम और अधर्म द्रव्य हैं । इन्द्रियग्राह्य अविनाभावी कार्य हेतु से प्रतीन्द्रिय कारण को ज्ञप्ति कर ली जाती है। ...
क्रमेण सर्वपदार्थानां गतिपरिणामिना गत्युपग्रहस्य स्थितिपरिणामिना स्थित्युपग्रहस्य