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गोम्मटसार जीवकाण्ड
सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका भाषाटीका सहिल
अब इस शास्त्र के मूल सूत्रनि की संस्कृत टीका के अनुसारि भाषा टीका करिए है । वहां प्रथम ही संस्कृत टीकाकार करि कथित ग्रन्थ करने की प्रतिज्ञा, वा मूल शास्त्र होने के समाचार वा मंगल करने की पुष्टता इत्यादि कथन कहिए है ।
aat नेमिचंद्र जिनराय, सिद्ध ज्ञानभूषण सुखदाय । करि हो. गोम्मटसार सुटीक, करि करपट टीक तं ठीक ॥१॥
असे संस्कृत टीकाकार मंगलपूर्वक प्रतिज्ञा करी है । बहुरि कहै हैं - श्रीमान् अर काहू करि हण्या न जाय है प्रभाव जाका, ऐसा जो स्याद्वाद मत, सोही भई गुफा ताके अभ्यंतर वास करता जो कुवादीरूप हस्तीनि को सिंहसमान सिनन्दि नामा मुनींद्र, तिहरि भई हैं ज्ञानादिक की वृद्धि जाकै, ऐसा जो गंगनामा वंश विषै तिलक समान पर राजकार्य का सर्व जानने की प्रादि दे करि अनेक गुणसंयुक्त श्रीमान् राजमल्ल नामा महाराजा देव, पृथिवी की प्यारा, तांका महान् जो मंत्रीपद, तिहविष शोभायमान र रण की रंगभूमि विषै शूरवीर पर पर का सहाय न चाहै, ऐसा पराक्रम का धारी, अर गुणरूपी रत्ननि का प्राभूषणं जाके पाइए अर सम्यक्त्व रत्न का स्थापना कौं आदि देकरि नानाप्रकार के गुरणन करि अंगीकार करी जो कीर्ति are भर्त्तार सा जो श्रीमान् चामुंडराय राजा, ताका प्रश्न करि जाका अवतार भया, ऐसा इकतालीस पदनि विषै नामकर्म के सत्व को निरूपण, तिह द्वार करि समस्त शिष्य जननि के समूह को संबोधन के प्रथि श्रीमान् नेमीचन्द्र नामा सिद्धांतचक्रवर्ती, समस्त सिद्धांत पाठी, जननि विषे विख्यात है निर्मल यश जाका, अर विस्तीर्ण बुद्धि का धारक, यह भगवान् शास्त्र का कर्ता ।
सो महाकर्मप्रकृति प्राभृत नामा मुख्य प्रथम सिद्धांत, तिहका १ जीवस्थान, २. क्षुद्रबंध, ३. बंधस्वामी, ४. वेदनाखण्ड, ५. वर्गणाखंड, ६. महाबंध - ए छह खंड हैं ।