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सम्यग्ज्ञानचतिका सोठिका ] जानना । बहुरि अलौकिक मान की सहनानी स्थापि, तिनके लिखने का का तहां संकलनादि होते लिखने का जो विधान है, सो आग संदृष्टि अधिकार विर्षे वर्णन करेंगे, तहाँ तें जानना । बहुरि तहां ही लौकिक मानः का भी-लिखने का वा तहां संकलनादि होते लिखने का जो विधान है, सो वर्णन करेंगे । इहां लिखें ग्रन्थ विर्षे प्रवेश करते ही शिष्यनि कौं कठिनता भासती तहां अरुचि होतो, ताते इहाँ न लिखिए है । उदाहरण मात्र इतना ही इहां भी जानना, जो संकलन विर्षे ती अधिक राशि की ऊपरि लिखना जैसे पच अधिक सहस्र १०.." असें लिखने । व्यवकलन विष हीन राशि कौं ऊपरि लिखि तहां पूंछडीकासा आकार करि विदी दीजिए जैसे पंच हीन सहस्र १०.. असे लिखिए । मुणकार विर्षे गुण्य के प्रागै गुणक कौं-लिखिए । जैसे. पंचगुणा सहस्त्र १०००४५ असे लिखिए । भागहार विष भाज्य के नीचे भाजक कौं लिखिए । जैसे पांच करि भाजित सहस्र असे लिखिए। वर्ग विौं राशि को दोय बार बराबर मांडिए । जैसे पांच का वर्ग कौं ५४५ असे लिखिए। इन विर्षे राशि कौं तीन बार बराबरि मांडिए । जैसे पांच का घन कौं ५४५४५ असे लिखिए । वर्गमूल घनमूल विर्षे वर्गरूप-घनरूप राशि के प्रागै मल की सहनानी करनी । जैसे पचीस का वर्गमूल कौं "२५ व० म०" असे लिखिए। एक सौ पचीस का धनमूल कौ "१२५ घ० मू." असे लिखिए। असे अनेक प्रकार लिखने का विधान है ! असे परिकर्माष्टक का व्याख्यान कीया सों जानना । —
बहुरि राशिक का जहां-तहां प्रयोजन जानि स्वरूप मात्र कहिए है । तहां तीन राशि हो हैं - प्रमाण फल, इच्छा तहां जिस विवक्षित प्रमाण करि जो फल प्राप्त होइ, सो प्रमाणराशि अर फलराशि जाननी । बहुरि अपना इच्छित प्रमाण होइ, सो इच्छा राशि जाननी । तहां फल की इच्छा करि गुरिण, प्रमारण का भाग दीए अपना इच्छित प्रमाण करि प्राप्त जो फल, ताका प्रमाण प्राय है, इसका नाम लब्ध है । इहां प्रमाण पर इच्छा १ की एकजाति जाननी । बहुरि फल अर लब्ध की एक जाति जाननी। इहां उदाहरण जैसे पांच रुपैया का सात भरण अन्न आवै तौ सात रुपैया का केता अन्न आवै असें त्रैराशिक कीया। इहां प्रमाण राशि पांच, फल राशि सात, इच्छा राशि सात, तहाँ फलकरि इच्छा कौं गुरिण प्रमाण का भाग दीए गुणचास
१. छपी प्रति 'इच्छा' शब्द और अन्य हस्तलिखित प्रतियों में 'फल' शब्द है।
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