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राजपूताने के जैन-वीर
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मेवाड़ में पर्वत श्रेणियाँ अधिक हैं यह हरा भरा सुहावना प्रदेश है । साल भर बहने वाली मेवाड़ में एक भी नदी नहीं है। यहाँ छोटी बड़ी झीलें बहुत हैं । जिनमें कई अत्यन्त दर्शनीय और मन-मोहक हैं । मेवाड़ का जलवायु सामान्य रीति से आरोग्यप्रद समझा जाता है । भूमि की ऊँचाई के कारण यहाँ सर्दी के दिनों में न तो अधिक सर्दी और उष्णकाल में न अधिक गर्मी होती है । यहाँ की समतल भूमि पैदावारी के लिये बहुत अच्छी है ।' मेवाड़ के प्रसिद्ध किले चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़ और माण्डलगढ़ हैं, इनके सिवा छोटे-मोटे गढ़ और गढ़ियाँ भी अनेक हैं । बाम्बे बड़ौदा एन्ड सेण्ट्रल इण्डिया रेल्वे की अजमेर से खंडवा जानेवाली छोटी नाप वाली रेल की सड़क मेवाड़ में होकर निकलती है और उस के रूपाहेली से लगाकर शंभुपुरा तक के स्टेशन इस राज्य में हैं। चित्तौड़गढ़ जंक्शन से उदयपुर तक ६९ मील रेल की सड़क उदयपर राज्य की तरफ से बनाई गई है, जो उदयपुर- चित्तौड़गढ़ रेल्वे कहलाती हैं । और दूसरी लाइन अभी हाल में 'भावली' 'जंक्शन से निकली है जो मारवाड़ जंक्शन तक जायेगी।
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उदयपुर राज्य की जन संख्या सन् १९३१ (वि०सं० १९८७ ) १५६६९१० थी जिसमें जैनियों की संख्या ६६,००१ थी।
मेवाड़ प्राकृतिक दृश्य में अपने ढंग का निराला है। काश्मीर
के बाद सुन्दरता में मेवाड़ का स्थान है। राजपूताने में सब से अधिक चान्दी, ताम्बा, लोहा, ताम्बड़ा ( रक्तं मणि) अमरक आदि की खानें मेवाड़ में हैं ।