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२३६ ___ राजपूताने के जैन-वीर अमीरखाँ को फोड़ लिया और चुपचाप.शत्र-सैन्य में से निकल कर जयपुर पर आक्रमण कर दिया। . . . . . . .
इधर महाराज जगतसिंह जो मारवाड़ के राज्य पाने का सुखस्वप्न देख रहे थे, जब उन्होंने जयपर विध्वंस होने और अपनी . पराजय का दुःखद समाचार सुना तो भौंचक्र से रह गये । मारवाड़ का राज्य तो क्या, उन्हें अपने ही राज्य को चिन्ता ने श्रा घेरा । अतः वह जोधपुर का घेरा छोड़कर जयपर की ओर शीघ्रता से ससैन्य चल दिये । मार्ग में इन्द्रराज सिंघवी ने इनकी सेना को भी ठीक किया और उनसे मारवाड़ का लूटा हुआ माल . सब छीन लिया । जोधपुर की इस प्रकार रक्षा और जयपुर-राज्य . के विध्वंस के समाचार, जव महाराज मानसिंह ने सुना तो वह अवाक रह गये, वह इन्द्रराज के इस देश प्रेप, स्वामिभक्ति और.. नीति-निपुणता से अत्यन्त ही प्रसन्न हुये।
विजयी इन्द्रराज जव जोधपुर आया तब मानसिंह ने उसका अत्यन्त प्रेम पूर्वक स्वागत किया और अभिनन्दन स्वरूप एक कविता भी बनाकर कही, जिसके तीन पद्य निम्न प्रकार हैं:
पैड़ियां घेरा जोधपुर, प्राविया दला असख।। पाव दिगन्ते इन्दरा, थे दीधा भुजयंम ॥ इन्दावे असवारियां, जिन चौहटे अम्बेर । धन मंत्री जोधा नरा, थे जैपुर कीवी जेर ॥
आम पड़तों इन्दरा, तें. दीना भुजदंड । . माखाड़ नो के.टिरों, राख्यो राज अखण्ड ।।