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बच्छावतों का उत्थान
और
पतन
"
टपक ऐ शमा! आँसू बनके परवाने की आँखों से । : सरापा दर्द हूँ हसरत भरी है दास्तां मेरी ॥
- "इकंवाल""
१. सगरः---
"श्री जालोर महादुर्गाधिप देवदावंशीय महाराजा श्री
सामन्तसीजी थे, तथा उनके दो रानियाँ थीं, जिनके
संगर वीरमदे और कान्हड़ नामक तीन पुत्र और उमा नामक एक पुत्री थी । सामन्तसीजी के बाद उनका दूसरा पुत्र बीरमदे जालोराधिपति हुआ और सगर नामक बड़ा पुत्र देलवाड़े में आकर वहाँ का स्वामी हुआ । इस का कारण यह था कि सगर की माता देलवाड़े के झालाजात रांगा भीमसी की पुत्री थी और वह किसी कारण से अपने पुत्र सगर को लेकर अपने पिता के यहाँ चली गई थी। अतः सगर अपने नाना के घर में ही बड़ा हुआ था, जंब . सगर युवावस्था को प्राप्त हुआ, उस समय सगर का नाना भीम