Book Title: Rajputane ke Jain Veer
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 341
________________ वू पर्वत पर के प्रसिद्ध जैनमन्दिर ३२१ 'दी। उसके बाद विमल ने अम्बादेवी की आराधना की; जिस से प्रसन्न होकर अम्बा ने वर मांगने की आज्ञा दी । विमल ने देवमन्दिर के बनने और पुत्र होने की प्रार्थना की। इस पर अंबा ने कहा कि दोनों में से एक के लिये कह, क्योंकि दो बातें नहीं हो सकती हैं । तव विमल ने अपनी स्त्री से पूछा । उसने उत्तर दिया कि, पुत्र प्राप्ति तो पशु, पक्षि-योनि में भी हो सकती है। इस लिये मन्दिर का वर मांगो । विमल ने भी ऐसा ही किया । अम्विका वर देकर धावू पर चली गई । विमल ने उसके कुंकुम से शोभित पृथ्वी पर उल्लिखित पदचिन्ह को खोदा, वहाँ से उसको ७२ लाख का द्रव्य मिला। इसको प्राप्त कर विमल ने मन्दिर बनवाना प्रारम्भ कर दिया | परन्तु यह मन्दिर दिन में बनाया जाता था और रात को स्वयं ही गिर पड़ता था । इसी तरह ६ महिने बीत गए । तब विमल नैं देवी का आह्वाहन किया। देवी ने प्रकट होकर कहा कि, यह काम इस पृथ्वी के मालिक वालीनाह नाग का है। अतः तू तीन दिन तक उपवास करके उसीकी पूजा कर और पवित्र चलि दे | परन्तु यदि वह मद्य मांस मांगे तो खड्ग निकालकर उसको धर्मका देना । यह कह कर देवी चली गई । विमल ने वैसा ही किया । तथा खड्ड में अम्बिका को देखकर वालीनाह भाग गया और उस दिन से वहाँ पर केवल क्षेत्रपाल की तरह रहने लगा ! मन्दिर निर्विघ्न समाप्त हुआ । संवत् १०८८ में आदिनाथ की मूर्ति स्थापन की गई। तथा वहीं पर अम्बिका की कृपा सूचित करने के 1 लिये खश्वर क्षेत्रपाल सहित एक अम्बिका की मूर्ति भी स्थापन

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