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सिंहावलोकन
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फिर उसी के समान उसी के मुताविले में राया कुम्भा के दि० जैन मंत्री द्वारा जैन कीर्तिस्तम्भ का बनवाया जाना कुछ अभिप्राय रखता है । भज्ञे ही उस अभिप्राय का हमें पता न लगे, पर यह बात भी ध्यान देने योग्य है, कि राणा कुम्भा ने तो, दो बादशाहों से विजय लाभ प्राप्त करने में उस अपूर्व कृति का निर्माण कराया, तब उसके मंत्री ने ऐसा कौनसा महान कार्य किया था, जिसके कारण उसे भी राणा कुम्भा की हिर्स करनी पड़ी ! पूर्व काल में तो क्या वर्तमान रियासतों में अव भी कोई कितना ही सम्पन्न क्यों न हो, राजाओं की नकल नहीं कर सकता । राणा कुम्भा का मंत्री ही राणा जैसी स्मृति बनवाता है और राणा कुछ नहीं कहते हैं, तब उस मंत्री का उस समय कैसा प्रताप होगा और उसके कैसे साहस युक्त कार्य होंगे, सहज में ही अनुमान किया जा सकता है। आज भी वह कीर्तिस्तम्भ चित्तौड़ दुर्ग में जैन-वीरों की पवित्र स्मृति स्वरूप सीना ताने हुये खड़ा है।
मेवाड़ राज्य में एक समय सूर्यास्त के बाद भोजन करने की आज्ञा नहीं थी । इसका उल्लेख श्री० श्रमाजी द्वारा अनु देव टाड् राजस्थान, जागीरी प्रथा पु० ११ में मिलता है । यदि यह आज्ञा भी ऐतिहासिक मानी जाय, तो इससे भी प्रकट होता है कि उस समय सर्व साधारण में जैनधर्म का काफी प्रचार था । राजा प्रजा दोनों ही जैनधर्म से प्रभावित थे ।
इसीप्रकार मेवाड़ राज्य में जब जब किले की नींव रखी जाय, तब तब राज्य की ओर से जैन मन्दिर बनवाये जाने की