Book Title: Rajputane ke Jain Veer
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 366
________________ राजपूताने के जैन वीर प्रस्तुत पुस्तक में जैन वीरांगनाओं का उल्लेख साधना-भाव के कारण नहीं किया जा सका है किन्तु इस से यह न समझ लेना चाहिये कि वह विलासिता की मूर्ति बनी रहती थीं । नहीं, वह भी वीर-दुहिता थीं। वे ही उक्त वीरों की जननी भगनी और पत्नी थीं । जब पति, भाई और पुत्र धर्म के लिये युद्ध में जम मरते थे, तब जैन महिलाएँ भी अपने कर्तव्य पालन में पुरुषों से पीछे नहीं रहती थीं। आज भी राजपूताने में विशेष कर मारवाड़ में मुहट्टों मुहल्लों में जैन सतियों के करकमलों के पवित्र चिन्ह विद्यमान हैं ।. " ३४४ यह माना कि आज हमारे उक्त पूर्वज इस भौतिक शरीर में नहीं हैं, तौभी उनकी सुकीर्ति संसार में अभीतक स्थायी बनी हुई है। ऐसे ही स्वर्गीय वीरों को सम्बोधन करके किसी सहृदय कवि : ने क्या खूब लिखा हैं : तुम्हें कहता है मुर्दा कौन, तुम ज़िन्दों के ज़िन्दा हो । तुम्हारी नेकियाँ बाकीं, तुम्हारी खूबियाँ बाक़ी ॥ 1

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