Book Title: Rajputane ke Jain Veer
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

View full book text
Previous | Next

Page 371
________________ [ ३४९ ] @ को स्वतः पढ़ने की इच्छा प्रबल हो जाती है। मैं उनकी लेखन पद्धति, अगाध परिश्रम और इतिहास-प्रेम की मुक्तकंठ से प्रशंसा करता हूँ ।" बा० उमराव सिंह टांक, बी. ए. एल. एल. बी. प्लीडर देहली: , ... “श्रीयुत गोयलीय कृत "मौर्य साम्राज्य के जैन-चीर" नामक निबन्ध मैंने देखा । वास्तव में निबन्ध शिक्षाप्रद, चित्ताकर्षकं वीर रस- पूर्ण है ।: मौर्य साम्राज्य के ऊपर अनेक पुस्तकें लिखी गई हैं; परन्तु प्रिय गोयलीय ने जिस भाव को लेकर यह पुस्तक लिखी है, वह अपने ढंग की अनूठी वेजोड़ और प्रथम है ।"" वा० कीर्तिप्रसाद बी. ए. एल. एल. बी. अधिष्ठाता श्रात्मानन्द गुरुकुल गुजरानवाला (पंजाब): " पुस्तक इतिहास का अच्छा अवलोकन करने के बाद लिखी गई हैं'।' श्रीचन्द्रगुप्तकें 'सम्बन्ध' में अजैन होने के भ्रम को दूर करने का सार्थक प्रयत्न किया गया है ।" C जैनं पुरातत्व वेता' पं० जुगलकिशोर, मुख्तार: "अनेक उपवनों से फूल चुनकर जो आपने इतिहास का यह सुन्दर गुलदस्ता तय्यार किया है, उसका मैं अभिनन्दन करता हूँ। इसकी तैयारी में जो परिश्रम किया गया है और जिस प्रेम रंगी सुदृढ़ : शब्द - डोरी से इसे बान्धा गया है वह सव प्रशंसनीय है । पुस्तक की विचारसरणी उत्तम है और उसमें चन्द्रगत" का धर्म वाला 'अंश' अधिक महत्व रखता है | चन्द्रगुप्त के जैनत्व सम्बन्ध में सत्यकेतुजी की यदि वे ही आपत्तियाँ हैं, जिनका आपने उल्लेख

Loading...

Page Navigation
1 ... 369 370 371 372 373 374 375 376 377