Book Title: Rajputane ke Jain Veer
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 374
________________ [ ३५२.] रोचक है । लेखक का परिश्रम सराहनीय है " रंगभूमि २२-१-३३ देहली :___ धार्मिक महत्व के अतिरिक्त इसका ऐतिहासिक महत्व भी काफी है । पुस्तक की यक्तियाँ सप्रमाण प्राह्य हैं और धार्मिक संकीर्णता से दूर है। भाषा भी ओजस्त्री है". जैन-जगत वर्ष ८ अंक: अजमेर :-- "लेखक में उत्साह खूब है और पुस्तक पढ़ने से पाठकों में भी • उत्साह का संचार होता है। जैन-मित्र २६-२-३३ सरत: "पुस्तक पढ़ने योग्य है। बहुत परिश्रम से लिखी गई है। सनातन जैन १६-२-३३ बुलन्दशहर: "लेखक एक उत्साही परिश्रमी और विचारशील युवक है । उन्होंने इतिहास के कूड़े में से रत्न चुन चुनकर यह मणिमाला तैयार की है । भाषा बड़ी ओजस्वी और लेखनशैली युक्तियुक्त सारगर्मित, पक्षपात रहित तथा समयोपयोगी है। दिगम्बर जैन, सूरत:-- ... "वास्तव में पुस्तक बड़ी ही महत्वशाली है " । - जैन संसार (उद्दे), १-२-३३: देहली:. .. पुस्तक तवारीख की हैसियत से इस काबिल है कि, उसे एक उच्च स्थान दिया जाय . नोट-इसका द्वितीय संस्करण परिवर्द्धित. परिवर्तित और संशोधित करके नवीन रूप में संचित्र प्रकाशित करने की योजना की जा रही है। मूल्य २०० पृष्ठ का केवल एक रुपया होगा। ती:- ... .

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