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सिंहावलोकन
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धर्मावलम्बी राज्य के भिन्न धर्मी होते हुये भी सेनापति, मन्त्री आदि होते रहे हों; राजपूताने के सिवाय संसार के किसी भी भाग. में ऐसे उदाहरण शायद ही मिलें ।
प्रस्तुत पुस्तक में कुछ इने गिने मंत्री और सेनापतियों का उल्लेख किया गया है, पर इनको इस पद तक पहुँचाने में, इनकी प्रतिष्ठा बढ़ाने में, और इनको विजयमाल पहनाने में इनके असंख्य अनुयाइयों को अपनी आहुति देनी पड़ी होगी, क्योंकि जब तक कोई जाति अपने को मिटाकर ख़ाक में मिला नहीं देती, तब तक उसे उपयुक्त फल की प्राप्ति नहीं होती ।
उस जमाने में राजपूताने के जैनियों का सैनिक जीवन था । वह अपने देश, धर्म और स्वामी के लिये मिटना अपना धर्म समगते थे। किसी ने भी देशद्रोह या विश्वासघात किया हो, अथवा युद्ध से पीठ दिखाई हो, सौभाग्य से ऐसा एक भी उदाहरण नहीं मिलता । जैन वीरों ने अपनी प्रखर प्रतिभा अद्भुत साहस अलौकिक वीरता से अनेक लोकोपयोगी कार्य किये हैं ।
आज भी राजपूताने के वर्तमान जैनों के पास उनके सुयोग्य पूर्वजों को उनकी सेवायों के उपलक्ष में मिले हुये राज्य की ओर से पट्टे (सनद, प्रमाण पत्र ) आदि मौजूद हैं। जिनसे प्रकट होता
+ जय मिटाकर अपनी हस्ती सुर्मा धन जायेगा तु । अहले आलम की निगाहों में समा जायेगा तू ॥
"दास"