Book Title: Rajputane ke Jain Veer
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 357
________________ संक्षेप में राजपूताने के जैन-वीरों का यही परिचय है। नहीं मालूम ऐसे-ऐसे कितने नररत्न संसार-सागर के अन्तस्थल में मूल्ययान मोती की. भांति छिपे हुये पड़े हैं, वकील "इतवाल" साहब:- . अपने सहरा में अभी श्राह बहुत पोशीदा हैं। विजलियां बरसे हुये वादल में भी ख्यांचीदा हैं। इन्हीं नर-रत्नों में से कुछ को इतिहास के उदर-गाहर से निकाल कर प्रकाश में लाने का यह असफल प्रयत्न किया है। इससे अधिक साधनाभाव, समयाभाव आदि के कारण नहीं लिखा जा सका है। यद्यपि समस्त राजपूताना जैन-चीरों की क्रीड़ा स्थली रहा है, वहाँ का चप्पा-चप्पा उनके पवित्र बलिदान से देदीप्यमान है, किन्तु प्रस्तुत पृष्ठों में इनीगिनी रियासतों के कुछेक पीरों का परिचयमात्र ही दिया जा सका है। अस्तु नितना भी संकलन किया जा सका है। वह भला है या बुरा, शुष्क है या नीरस, जैसा भी है पाठकों के करकमलों में है। .. ___ एक बार राजपूताने के एक प्रसिद्ध नेताने वहाँ के वर्तमान राजाओं की शासन-प्रणाली और स्वच्छन्दवृत्ति का जिक्र करते .

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