Book Title: Rajputane ke Jain Veer
Author(s): Ayodhyaprasad Goyaliya
Publisher: Hindi Vidyamandir Dehli

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Page 358
________________ ३३६ राजपूताने के जैनवीर हुऐ दुख भरे शब्दों में कहा था कि " राजपूताने की रियासतों के निर्माण में जैनियों का पूर्ण सहयोग रहा है, यदि इनका इस में हाथ न रहा होता, तो इन रियास्तों का आज से कई सौ वर्ष पहिले अस्तित्व ही मिट गया होता। उस वक्त इन रियासतों के अस्तित्व, बनाये रखने में उन जैनों के भाव भले ही श्रेष्ठ रहे हों, पर आज तो हमें उनकी इस करनी के कड़वे फल चखने पड़ रहे हैं।" उस समय मैने उनके इन शब्दों को अत्युक्ति समझ कर उपहास में उड़ा दिया था, किन्तु अब मैं उक्त शब्दों की सार्थकता समझ पाया हूँ । जो महानुभाव राजपूताने में रहते हैं अथवा जिन्होंने राजपूताने के इतिहास का अध्ययन किया है, वह भली भान्ति जानते कि राजपूतानान्तरगत प्रायः सभी रियासतों के जैन-धर्मावलम्बी.. संदियों परतानपुश्त मंत्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष आदि होते रहे Hi राज्य की बागडोर, सैन्य संचालन और राजकोष हस्तगत करने से पूर्व किसी जाति को, उस देश के प्रति कितना अधिक अनुराग, बलिदान, आत्म-त्याग करना पड़ता है और सदाचारपूर्ण जीवन व्यतीत करते हुये सब धर्मों और सब क़ौमों के लिये कितना उदार हृदय होना पड़ता है। यह विज्ञ पाठकों से . " नहीं। फिर संदियों जिस जाति के अधिकार में यह महत्व पूर्ण गौरवास्पद रहे हों, उस जाति की महानता, वीरता, त्याग, शौर्य आदि का अन्दाजा लगाने के लिये, सिवाय अनुमान की तराज़ पर तोलने के और क्या उपाय हो सकता है ?- सदियों एक ही וי

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