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३२४ राजपूताने के जैन-चीर. की स्त्री ने और दूसरा वस्तुपाल की स्त्री ने स्वयं अपने खर्च से वनवाया था। शान्तिविजयंजी की 'जैनतीर्थ गांइड' नामक पस्तक में भी ऐसा ही लिखा हैं । परन्तु यह बात विश्वास योग्य नहीं हो सकती, क्योंकि उन दोनों ताकों पर एक ही प्रकार के लेख हैं। उनका आशय इस प्रकार है:
वि० सं० १२९० वैशाख वदि १४ वृहस्पतिवार के दिन अपनी दूसरी स्त्री सुहडादेवी के कल्याणार्थ ये ताक और अजितनाथ का चित्र तेजपाल ने वनवाया।
यद्यपि इस समय गुजरात में पोरवाड और मोढ जाति के महाजनों के बीच विवाह सम्बन्ध नहीं होता है। तथापि यह संबंध बारहवीं शताब्दी में होता था। ऐसा इस लेख से प्रकट होता है। ___ इस मन्दिर की हस्तिशाला में संगमरमर की १० हथनियाँ एक पंक्ति में खड़ी हैं। इन पर चण्डप, चण्डप्रसाद सोमसिंह, अश्वराज, लुणिग, मल्लदेव, वस्तुपाल, तेजपाल, जैत्रसिंह और. लूणसिंह (लावण्यसिंह) की मूर्तियें वैठाई गई थीं। परन्तु इस समय उनमें से एक भी विद्यमान नहीं हैं । इन हानियों के पीछे की तरफ़ पूर्व की दीवार में १० ताक हैं । इनमें भी इन्हीं दुस पुरुषों की सस्त्रीक मूर्तियें बनी हुई हैं। इनके हाथों में पुष्पमालाएँ हैं । तथा वस्तुपाल के मस्तक पर छत्रं भी बना हुआ है । प्रत्येक स्त्री पुरुषों की मूर्ति के नीचे उनका नाम खुदा हुआ है। ... __ इनका संक्षिप्त वर्णन पूर्वोक्त वि० सं० १२८७ के लेख में भी .
किया गया है ।
०७० १२८७ के लेख में भी..