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....३३० .. राजपूताने के जैन-धीर..
अलाउद्दीन खिलजी की फौज ने जालोर के चौहान राजा कान्हा देव पर चढ़ाई की, शायद उसी समय ये मन्दिर तोड़े गये हों।
जीर्णोद्धार में बना हुआ काम सुन्दरतामें पुराने कार्य की बराघरी नहीं कर सकता है। पुराने समय का कार्य बहुत ही सुन्दर है।'
अव हम इसकी प्रशंसा में अपनी तरफ से कुछ न कहकर हि: न्दुस्तानियों के पूर्व पुरुषों को असभ्य समझनेवाली सभ्याभिमानी .. युरोपियन जाति के कुछ सहृदय विद्वानों की सम्मति उद्धृत करतेहैं। :
भारतीय शिल्प के मिझ लेखक फर्गुसन साहव ने अपनी 'पिक्चर्स इलस्ट्रेशन्स ऑफ.एनशियेन्ट आर्किटेक्चर इन हिन्दु स्थान' नामक पुस्तक में लिखा है:___ "इस संगमरमर के बने हुए मन्दिर में अति कठोर परिश्रमः सहनशील हिन्दुओं की टांकी से फीते के समान धारीकी से ऐसी : मनोहर आकृतियें बनाई गई हैं, जिनका नकशा काराजपर बनाने में बहुत परिश्रम और समय नष्ट करने पर भी मैं समर्थ नहीं हो । सकता।
कर्नल टॉडने यहाँ के गुम्बजकी कारीगरी के लिये लिखा है:
"इसका चित्र तैयार करने में कलम थक जाती है । अत्यन्त.. परिश्रमी चित्रकार की कलमको भी इसके चित्रमें वहुत श्रम पड़ेगा। । रासमाला के लेखक प्रसिद्ध ऐतिहासिक फार्वस साहब ने इन . दोनों आदिनाथ और नेमिनाथके मन्दिरों के विषय में लिखा है:. इस मंन्दिरों की खुदाई में केवल स्वाभाविक निर्जीव पदार्थों .. • के चित्र ही नहीं बनाए गए हैं, किन्तु सांसारिक जीवन के दृश्य ...