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आबू पर्वत पर के प्रसिद्ध जैनमन्दिर
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इस समय केवल तीन मूर्तियाँ मौजूद हैं। ये मूर्तियाँ चतुर्भुज हैं। प्रसिद्ध इतिहासवेता रायबहादुर पं० गॅरीशंकरजी का मत है कि. विमलशाह की मूर्ति और हतिशाला, मन्दिर के साथ की बनी हुई नहीं है, पीछे से बनवाई गई हैं । हस्तिशाला के बाहर चौहान महाराव लुंढा ( लुंभा ) के दो लेख लगे हैं। इनमें का प्रथम लेख वि० सं० १३७२ (ई० स० १३१६ ) चैत्र यदि ८ का है और दूसरा वि० सं० १३७३ (ई० स० १३१७) चैत्र बदि का, सिरोही के राव इसी के वंशज हैं ।
जिनप्रभसरि की तीर्थकल्प नाम की पुस्तक में लिखा है:म्लेच्छों ने विमलशाह और तेजपाल के बनवाए हुए आदिनाथ और नेमिनाथ के मन्दिरों को तोड़ डाला था । शक सं० १२४३ (वि० सं० १३७८) में महणसिंह के पुत्र लल्ल ने आदिनाथ के मन्दिर का और चडसिंह के पुत्र पीथड ने नेमिनाथ के मन्दिर का पीछे से जीर्णोद्धार करवाया ।
वि० सं० १३७८ के आदिनाथ के मन्दिर के लेख से प्रकट होता है कि, विमल को स्वप्न में अम्बिका ने आदिनाथ का मन्दिर बनवाने की आज्ञा दी थी । उसके अनुसार विमल ने यह मन्दिर वनवाया था । तथा राव तेजसिंह के राज्य समग्र वि० सं० १३७८ ( ई० सं० १२२१ ) में लल्ल और वीजड नाम के साहूकारों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया । जिस समय यह लेख लिखा गया था, उस समय लुंभा का देशन्स हा चुका था । ऐता इसो. लेख से ज्ञात होता है ।