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राजपूताने के जैन वीर
शत्रुंजय का संघ भी निकाला। इन्होंने यथा शक्ति जिनशासन का अच्छा उद्योत किया। अन्तमें अनशन आराधन कर स्वर्गासीन हुये । ८. जेसलजी:
कड़वा जी की चौथी पीढ़ी में जेसलजी हुये, उनके बच्छराज, 'देवराज और हंसराज नामक तीन पुत्र हुये । "
६. बच्छराजजी :
अपने भाइयोंको साथ लेकर मण्डोवर नगर में राव रिद्धमलजी के पास जा रहे और राव रिद्धमल जी ने बच्छराजजी के बुद्धि के अद्भुत चमत्कार को देखकर उन्हें अपना मंत्री नियत करलिया ।
जब रिद्धमल राणा कुम्भां के हाथसे मारा गया, तब बच्छराज ने जोधा को मंडौर बुलाने के लिये निमंत्रणपत्र भेजा और उसको राजा प्रसिद्ध किया । कुछ काल के बाद जोधा के लड़के बीका ने अपने लिये एक नवीन राज्य स्थापित करने की अभिलाषा से मंडौर से उत्तर की ओर प्रस्थान किया । बच्छराज भी उस पराक्रमी युवराज के साथ हो लिया। बच्छराजका यह कार्य बहुत ही ठीक था बच्छावत वंश के इतिहास में उन के शुभ संवत् का प्रारम्भ यहीं से होता है । वीका के सौभाग्य ने जोर लगाया और उसको अपने कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। जंगल ( Janglu) के संकलों (Snnking) की भूमि को अपने अधिकार में करके अब उसने पश्चिम की ओर गमन किया और भट्टियों (Phatting ) से भागौर
+ जैनसम्प्रदाय शिक्षा पृ०. ६३९-४४ ।,