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बच्छावतों का उत्थान और पतत २५५ सिद्ध होता है कि कर्मचन्द का पड्यंत्र से कोई सम्बन्ध न था
और वह विलकुल निर्दोपी था । हम सब इस घातको जानते हैं कि कमचन्द के साथ रागसिंहका कितना गहरा रैर था । अतः उसने करमचन्द को दिल्ल.दरवार में नीचा और अपमानित करने के लिये भरसक उद्योग किया और शायद उसने प्रकार से कहा भी हो कि, करमचन्द को हमें सौंप दो, अथवा उसको अपने यहाँ से निकाल दो, परंतु न्याय अर नीति पर चलने वाले अकवर जैसे न्यक्ति ने एक क्षण के लिये भी करमचन्द की निर्दोपता पर शंका नहीं की। अकबर ने उस का बड़ा आदर-सत्कार किया। यहाँ पर यह शंका की जा सकती है कि जब करमचन्द निर्दोषी था, तब वह वीकानेर से क्यों भाग गया? जिन पुरुषों ने राजस्थान का इतिहास भलीभांति अध्ययन किया है और जिनकेमानसिकनेत्रों के सामने इंद्रराज सिंघवी, अमरचन्द सुराणा जैसे व्यक्तियों की प्राकृतियाँ घूम रही हैं वे इस बात में हमारे साथ सहमत हो सकते हैं कि उस अवसर पर उस का भागना ही ठीक था । दुर्भाग्य से उन दिनों में ऐसे हतभाग्य मनुन्यों के लिये कि जिन पर राज्य के विरुद्ध पड़यंत्र रचने का टोप लगाया गयाहो, कोई न्यायालय भीनहींथा। गरज यह कि करमचन्द पड्यत्र के देप से विलकुल मुक्त था उसने सत्य और न्याय के कार्यों के लिये अपने प्राण न्योछावार कर दिये । वह किसी पड्यंत्र का रचयिता नहीं था, पर वह स्वयं पड्यंत्र का शिकार होगया । उसकी बुद्धिमानी और कर्तव्य तस'रताही,जिनसे उसने राज्यकोसम्हालरक्खाथा, उसके नाराकाका